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कवि का मन - (रवि प्रकाश)

छंद -15 गुरु अथवा 30 मात्राएँ (16 पर यति)

अम्बर कैसे झूला झूले,नदियाँ कैसे गाती हैं;
तारों की सौगातें ले कर,रातें मन बहलाती हैं।
सूरज के माथे पे आख़िर,किसके मद की लाली है;
अँगड़ाई लेते पत्तों पर,किसने शबनम डाली है।
किरणों के आभूषण पहने,भोरें क्यों इठलाती हैं;
कलियों की चटकीली गलियाँ,भौँरों को भरमाती हैं।
सुध-बुध अपनी खो कर कितना,दोपहरें अलसाती हैं;
दिन की पीड़ा हरते-हरते,साँझें क्यों सँवलाती हैं।
गुलमोहर की डाली से क्यों,चंदा उलझा रहता है;
आहें भर के पगला प्रेमी,तारों से क्या कहता है।
नैनों की बोली से प्रीतम,भोली को समझाता है;
सीने की धुकधुक से उठ के,सपना क्यों तुतलाता है।
राधा कोई मुरलीधर से,गुपचुप क्या बतियाती है;
बलखाती सी क्यों आती है,सहमी-सहमी जाती है।
फिर कोई मृगनयनी आ कर,पनघट पे क्या गाती है;
गगरी ले कर आते-जाते,आँचल क्यों उलझाती है।
अल्हड़ यौवन की साँसों में,क्योंकर ऐसी मस्ती है;
कजरारी आँखों में कब से,मतवालों की बस्ती है।
अब के सावन मनभावन में,कैसे बदरा बरसेंगे;
कजरा किसका बह जाएगा,किसके नैना तरसेंगे।
रस्ते-रस्ते रमता जोगी,पानी सा क्यों बहता है;
बंजारा इकतारा ले कर,दुनिया से क्या कहता है।
कितनी बातों से आलोड़ित,होता कवियों का मन है;
उलझन से रचना होती या,रचना में ही उलझन है।
साधारण सी हलचल से भी,प्रतिभा विचलित होती है;
कुछ के उत्तर उपजाती है,कुछ प्रश्नों को बोती है।
बासंती झोंकों में जैसे,बरबस कोकिल गाती है;
वैसे कवि के अंतरतम में,कविता भी मदमाती है।
लहरें,नदिया,सागर,मोती,दीपक,जुगनू,तारे हैं;
धीवर,नैया,आँसू,आशा,पावक है,अंगारे हैं।
भोला विस्मित बचपन जिसमें,हुलसाता नवयौवन है;
पतझर में भी सावन गाता,अलबेला कवि का मन है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Prakash on September 8, 2013 at 3:32pm
धन्यवाद जी !!!
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 6, 2013 at 9:06am

 सप्रेम राधे-राधे ॥ कुछ कविता ऐसी होती है, सब के मन को भाती है।  

रवि प्रकाश जी आपकी कविता भी उनमे से एक है, बधाई ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 12:58am

भाई रविजी, हृदय से बधाइयाँ.

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है.. बधाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 22, 2013 at 12:21pm

आदरणीय रवि भाई बेहद सुन्दर लाजवाब पंक्तियाँ बन पड़ी हैं आपने कई जगह प्रथम पंक्ति में है और द्वतीय पंक्ति नें हैं का प्रयोग किया किया है, इस पर ध्यान दें. बधाई स्वीकारें इस सुन्दर रचना पर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 4:56pm

सुंदर रचना हेतु बधाई आदरणीय रवि जी

Comment by Ravi Prakash on August 21, 2013 at 1:35pm
thanks bhandari Ji.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2013 at 12:29pm

रवि प्रकाश जी , लाजवाब रचना !! बहुत बहुत बधाई !!

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