..एक व्यथा ...कथा नहीं यह
नीलेश और रोमा आज कुछ जल्दबाजी में थे |कल रात को भी नीलेश अपनी ड्यूटी कुछ जल्दी छोड़कर घर आ गया था |और भोर से ही रोमा कहीं जाने की तैय्यारी कर रही थी |दोनों बेटियाँ छोटी गोलू और बड़ी मीनू आँगन में आपस में खेल रही थी |रोमा रह रह कर उन्हें देख आती | ग्यारह बजते ही नीलेश और रोमा घर से बाहर निकले | मकान मालिक को कहा की वे गांव जा रहें है | सप्ताह बाद आयेंगे |
करीब एक घंटे बाद वे बनारस के घाट पर थे |सामने गंगा अपने विस्तृत रूप में थी अखिल विश्व की जगमाता |भागीरथ का प्रयास ब्रह्मा की कमंडली से जब निकली तो स्वच्छ और जीवनदायिनी -अमृतमयी माँ स्वरुप |आज भले कुछ गंदली सी दिखती है पर आस्था का भौतिक रंग नहीं होता वो तो अंतर में होता है |कुछ देर नीलेश और रोमा दोनों बेटियों संग घाट घाट घूमते रहे |आज आपस में कुछ ज्यादा बातें नहीं कर रहे थे दोनों पति पत्नी |और दोनो छोटी बेटियाँ कभी गोद तो कभी जमीन पर | समय गुजर रहा था |पर्यटकों की भीड़ थी , देशी विदेशी दोनों |
एक भूंजे वाला पास से गुज़रा |बच्चियां मचल उठी | नीलेश को कुछ सूझा |"तीन जगह दे दो ,...हाँ अलग अलग |"
दोने में भूंजे लेकर बच्चियां दानों में खो गयीं |दो साल की छोटी माँ की गोद में और बड़ी जो करीब तीन साल की होगी पिता का हाँथ पकड़ चल रही थी |दोनों प्राचीन दशाश्वमेध घाट तक आये चहल पहल थी | मीनू को चौकी पर बैठा रोमा और नीलेश ने कहा की तू यही बैठ ,हम छोटी को पानी पिलाकर आते है |
.....मीनू का दाना खत्म हो गया | घाट पर भीड़ में किसी ने ध्यान नहीं दिया की एक अकेली बच्ची अपने माँ बाप का राह तक रही है और सिसक भी रही है | यूं भी छोटे छोटे बच्चे घाट पर सामान बेचते दिख जायेंगे आपको ,या उनके बड़े परिजन आस पास किसी कारोबार में लगे हों तो वे खेलते रहते हैं | यह सामान्य सी बात है काशी वालों के लिये |
धीरे धीरे आरती की भीड़ होने लगी | देशी विदेशी पर्यटक , स्थानीय लोग | एक लय में पंक्तिबद्ध होकर आरती में एकात्म से हो गये थे सब | ......बम्म्म्म्म्म्म्म्म......अचानक जोर का धमाका हुआ |सब कुछ तहस नहस | भगदड़ सी मच गयी | चारों ओर चीख पुकार ........|कुछ देर पूर्व का अलौकिक माहौल अफरा तफरी में बदल चुका था |....यह आतंकवादी हमला था |
"एक बच्ची मिली है"
"परिवार से बिछड गयी होगी "
"इसे अभी मैं अपने घर में सुरक्षित रखता हूँ |इसके माँ बाप को बाद में ढूंढेगे | " पास ही रहने वाले एक पुजारी ने कहा |
.........अगली सुबह स्टार न्यूज पर वही छोटी बच्ची समाचार में थी |'जिस किसी की बच्ची हो वह इन पुजारी जी के नंबर पर संपर्क कर सकता है "समाचार वाचिका ने कहा | मीडिया इस हादसे में परिवार से बिछड़ी बच्ची के प्रति सजग था |वाराणसी प्रशासन ने भी बहुत प्रयास किया पर बच्ची को उसका परिवार नहीं मिल |उसे बाल गृह भेज दिया गया | अखबार में उसका फोटो देख मोहल्ले वालों ने पहचाना तो पुलिस से संपर्क किया | पता चला चौकीदार करने वाले नीलेश और घरों में चौका करने वाली रोमा की बड़ी बच्ची थी |
पुलिस ने उन्हें बहुत खोजा ,पता चला वे बलिया के हैं उन्हें वहाँ तलाशा गया | आखिर पुलिस नीलेश तक पहुंची नीलेश ने कहा उसकी एक ही बच्ची है ..... उसकी एक और बच्ची मर चुकी है ...उसे उल्टी-दस्त हुई अस्पताल ले जाते तक वह मर गयी |उसके बार बार बयान बदलने पर पुलिस को शक हुआ |रोमा और नीलेश को पुलिस बनारस ले आयी | मीनू के पास उन्हें ले जाया गया |अंततः उन्होंने ने कबूल लिया की वे मीनू से छुटकारा पाना चाहते थे अतः उसे योजना बनाकर घाट पर छोड़ गये | कोई उसे पाल लेता | दोनों ने कहा | गरीबी में दो बेटियों को हम कैसे पालते |
...साहब हमें पता चला की बम फटा है तो हमने सोचा यह हमारे भाग्य से अच्छा हुआ लोग सोचेंगे बच्ची विस्फोट में परिवार से बिछड गयी है |
.......आज ...?.....रोमा और नीलेश दोनों बेटी की उपेक्षा के आरोप में जेल में है और मीनू और गोलू भी उनके साथ ही हैं जाने किस अपराध की सजा काट रही |
(कथा का आधार ....घटना प्रतीकात्मक....नाम परिवर्तित )
Comment
ये मानव द्वारा गढ़ी हुई नियति है उन बालिकाओं के लिए..यदि बालक होते तो यही माता पिता अपना सर्वस्व स्वाहा करके भी उनको पालते किंतु ... जाने अनेकों योजनाओं और घोषणाओं का वास्ता देने वाला ये समाज कब बदलेगा..!
कटु सत्य को बहुत ही सटीक अभिव्यक्त किया है आपने .
बागी भाई शुक्रिया !!
अरुण भाई , मन व्यथित हो गया यह कथा पढ़, सुंदर कथ्यशिल्प |
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