कौन हो तुम ?
जन गण मन के अधिनायक.
कहाँ रहते हो ?
मैं तुम्हारी जय कहना चाहता हूँ.
बरसों से हूँ मैं तुम्हारी खोज में,
तुम शून्य हो या हो सर्वव्यापी,
ईश्वर की तरह .
कौन हो तुम ?
तुम भारत भूमि तो नहीं ,
भारत तो माता है,
माता कभी अधिनायक तो नहीं होती .
तुम हो भारत भाग्य विधाता .
फिर बदला क्यों नहीं भारत का भाग्य.
भारत के भाग्य का ऐसा क्यों लिखा विधान.
कैसे विधाता हो ?
तुम्हारा स्वरुप तुम्हारी प्रकृति कैसी है?
मैं तुम्हारी जय कहना चाहता हूँ
मन मथ रहा है ..
............... नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
एक ही नाम है, बिना तख़ल्लुस-- सौरभ .. :-)))))
आदरणीय सौरव पाण्डेय जी , आपका सादर आभार . आपकी टिपण्णी पढ़कर अभिभूत हूँ .. मनोबल बढ़ा है .. बहुत धन्यवाद ..
आदरणीय नीरज नीर जी, आपकी इस कविता की भावनात्मक ऊँचाइयों पर मुग्ध भी हूँ और उठाये गये प्रश्नों पर निरुत्तर और जड़वत भी. इन प्रश्नों को संदर्भ बना कर पन्ने पर पन्ने रंगे जा सकते हैं... रंगे जाते रहे भी हैं, परन्तु, इतनी संयत भावभिव्यक्ति .. ओह ! अन्यतम !
आदरणीय, प्रस्तुत रचना किसी रचनाकर्म पर संदेह नहीं करती, अन्यथा कटाक्ष भी नहीं करती, अपनाये गये बिम्बों पर नम्रता से प्रश्न करती है. जिनके उत्तर अपेक्षित थे कि दिये जाते. किन्तु, नहीं, उन्हें आजतक टाला जाता रहा है, तंत्र द्वारा भी, समाज द्वारा भी.
मैं तुम्हारी जय कहना चाहता हूँ
मन मथ रहा है ..
वाह !
सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय मिश्र जी.. एवं आदरणीय बसंत नेमा जी .
अति सुन्दर आ0 नीरज जी ..... शुभकामनाये
शुक्रिया आदरणीया शुभ्रा शर्मा जी ..
आदरणीय नीरज जी,जन गण मन को समर्पित एक अच्छी कविता , बधाई
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी एवं आदरणीय माथुर जी बहुत आभार आप का
आदरणीय वीनस केसरी जी बहुत आभारी हूँ आपका ..
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