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निगाहों ने छुपा रखी समन्दर की निशानी है

निगाहों ने छुपा रखी समन्दर की निशानी है ।

बहा करता है अश्कों में ये जो खारा सा पानी है ।

ये मानो या न मानो तुम कोई सागर तो है दिल में,

उठा करती यहाँ पल पल जो मौजों की रवानी है ।

हज़ारों दर्द सहकर भी मोहब्बत छोड़ ना पाया ,

अकेला दिल नही मेरा ये हर दिल की कहानी है ।

इश्क से रूबरू होकर नए हर दिल के किस्से हैं ,

मगर ये चीज उल्फत तो यहाँ सदियों पुरानी है ।

भले ही दुनियादारी के बड़े नादान पंछी हम ,

मगर दिल के हिसाबों में समझ अपनी सयानी है ।

खुदा यूँ ही नही बोला इश्क को इश्क वालों ने ,

इश्क करके ही ये जाना चीज क्या जिंदगानी है ।

ये सागर इश्क का ऐसा पार हों डूबने वाले ,

बचा ले जाये जो खुद को ये उसकी बेईमानी है ।

जलाकर जिसकी हस्ती को ये शम्मा हो रही रौशन ,

न होगा जब वो परवाना तो शम्मा बुझ ही जानी है ।

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज

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Comment

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Comment by विजय मिश्र on August 13, 2013 at 1:05pm
बहुत लज्जत है आपकी गजल में और भुगता हुआ ,महसूसा हुआ सा लगता है .रूहानी जज्बा उभर कर सामने आया है .आभार नीरजजी
Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 3:19pm

kya baat hai !! khubsurat gajal ke liye bdhai aapko

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