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!! वायु प्रवाह !! ©
(१)
वायु प्रवाह पर विचार !
अचानक उठा खयाल !
कितने होते हैं प्रकार ?
(२)
नाना हैं वायु प्रवाह !
कह चुकी संस्कृत भी !
वायु प्रकार के भेद भी !
मुख्य हैं तीन प्रकार !
उच्च निम्न मध्यम !
सप्तम सुप्त औसत स्वर !
(३)
भीषण मार सप्तम सुर !
भूकंप सा अहसास देता !
मध्यम है खदबदाता !
चौंकता और उछलता !
सुप्त स्वर नासा छिद्र में !
जाकर उत्पात मचाता !
(४)
ना देखा आते किसी ने !
घुसपैठ मचाता प्रवाह !
अनायास ही हो अवरुद्ध !
गवाह बनती सांसें स्वयं !
सर्व शक्तिमान फुस्स स्वर !
परिणाम देता उपस्थिति !
कर्ता भी कर्मण्य होकर !
दूजों संग दीदे मटकाता !
हस्त करने जाते अवरुद्ध  !
समूह संग नासा छिद्र को !
(५)
विस्फोटक सा प्रतीत होता !
सुर सप्तम पाद से निकला !
कर्ण प्रान्त में सुन्नता !
बिन गोले हवा में उड़ता !
बेचारा मानुस बस करता !
पहले उससे पकड़ा जाता !
दीदे फाड़ घूरते बहु नैन !
खुद के दीदे धरती पाते !
(६)
कैसा खेला देखो वायु का !
आती पर न कहता कोई !
स्वयं को छोड़कर सब पर !
अंगुली उठता है हर कोई !

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (17 दिसंबर 2010)

 

► दोस्तों , , , असल में विसर्जन भी अपने आप में एक कला है...... जितने इसके प्रकार हैं उतने ही परिणाम भी नज़र आते हैं....... जैसे किसी प्रकार से एकदम से लोग उड़न~शील हो जाते हैं तो वहीँ दूसरे प्रकार के परिणाम में जनता असमंजस में होती है कि क्या करें क्या ना करें....... उसमें अपना स्थान छोड़ देने वाले लोग फायदे में रहते हैं जबकि भ्रमित मनुष्यों को अपने नासा एवं मस्तिष्क को जज़ब देना होता है.......... वहीँ आखिरी शांत प्याकर में किसी को बचाव का कोई मौका उपलब्ध नहीं होता है....... जो होना होता है होकर ही रहता है....... फिर भी जाने क्यूँ लोग आखिरी वाले पर ही अधिक बड़ी प्रतिक्रिया देते हैं....... आशा है आप सबने इस रचना का आनंद लिया होगा........ धन्यवाद दोस्तों....... :)))
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Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 19, 2010 at 9:46pm

► दोस्तों , , , असल में विसर्जन भी अपने आप में एक कला है...... जितने इसके प्रकार हैं उतने ही परिणाम भी नज़र आते हैं....... जैसे किसी प्रकार से एकदम से लोग उड़न~शील हो जाते हैं तो वहीँ दूसरे प्रकार के परिणाम में जनता असमंजस में होती है कि क्या करें क्या ना करें....... उसमें अपना स्थान छोड़ देने वाले लोग फायदे में रहते हैं जबकि भ्रमित मनुष्यों को अपने नासा एवं मस्तिष्क को जज़ब देना होता है.......... वहीँ आखिरी शांत प्याकर में किसी को बचाव का कोई मौका उपलब्ध नहीं होता है....... जो होना होता है होकर ही रहता है....... फिर भी जाने क्यूँ लोग आखिरी वाले पर ही अधिक बड़ी प्रतिक्रिया देते हैं....... आशा है आप सबने इस रचना का आनंद लिया होगा........ धन्यवाद दोस्तों....... :)))

Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 19, 2010 at 9:46pm

ha ha aaha...

 

बागी जी अब क्या कहें , आप स्वयं समझदार हैं..... :)))


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 18, 2010 at 8:46pm

आपका वायु प्रवाह भी गज़ब का है, जिसे आपने बकायदे चित्रों के साथ प्रवाहित किया है |

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