For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह's Blog (31)

  प्यार में तुम.. Copyright © 2011Photography by :- Jogendra Singh   प्यार में तुम जीते रहो , प्यार में तुम मरते रहो , प्यार में धोखा देते रहो , प्यार में धोखा खाते रहो ,   प्यार कहाती इबादत है , हाँ…

 

प्यार में तुम.. Copyright ©

2011Photography by :- Jogendra Singh

 

प्यार में तुम जीते रहो ,

प्यार में तुम मरते रहो ,

प्यार में धोखा देते रहो ,

प्यार में धोखा खाते रहो ,

 

प्यार कहाती इबादत है ,

हाँ इस इबादत पर तुम ,

किसी की बली लेते रहो ,

प्यार पर बली…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 19, 2011 at 12:03am — No Comments

फिर एक किनारा......? Copyright ©

 

फिर एक किनारा......? Copyright ©



फिर एक किनारा......?

इस ओर से उस ओर को जाने वाला एक खिवैया..

दो किनारों के बीच आवाजाही ही तो है जो समझ नहीं आती है..

रेत पर मेरे स्वागत को तत्पर..

बलुआ मिटटी और सीपियों से बनी तुम्हारी रंगोली..

मेरे आने से पहले ही बड़ी लहर उसे निगल…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 12, 2011 at 11:32pm — 2 Comments

फिर भी आँख है सूनी.. Copyright ©

 

फिर भी आँख है सूनी.. Copyright ©



फिर भी आँख है सूनी..

उस राह को तकते हुए..

जो जाती है सीधे तेरे दर पे..

तुमने कहा मैं भूल गया आना..

कहा तुमने मैं भूल गया तुमको..

सुना मैंने भी कुछ ऐसा ही था कि मैं..

पर तुम क्या जानो क्या बीती है मुझ पर..

सारा जमाना क्या , हम…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 10, 2011 at 11:00am — No Comments

दायरे.. ©

 

दायरे.. ©



कुछ सवाल कुछ ज़वाबों के घेरे में , उलझा जीवनपथ..

सीमित दायरे , दरकता है जीवन उनमें पल-प्रतिपल..



दहकते दावानल, स्वप्नों का होता दोहन उनमें निरंतर..

पल-प्रतिपल , भसम् उठा ख्वाबों की भेंट चढा रहे हम..

चरणों में अर्पित करने लगे , सीमित दायरों भरा जीवन..

चरण उस पथिक के ,…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 3, 2011 at 8:18pm — 1 Comment

बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©

 

बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©



शुरू में गज़ल सी , फिर भटकती लय है क्यूँ जिंदगी......

हर रंग भरा इसमें तुमने , सवाल सी है क्यूँ जिंदगी.......

ज़वाब दिए खुद तुम्हीं ने , फिर अधूरी है क्यूँ जिंदगी.....

माना है डगर कठिन , कदम बहकाती है क्यूँ जिंदगी.....

मंजिल का पता नहीं पर , राह भटकाती है क्यूँ जिंदगी.....



Photography & Creation by :- जोगेन्द्र सिंह…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 21, 2010 at 11:30pm — 6 Comments

कैसा है यह नाते पर नाता..? Copyright ©

 

कैसा है यह नाते पर नाता..? Copyright ©



निकल कर देखा.. अपनी माँ के उदर से उसने,

अनजानी.. कुछ मिचमिचाती अपनी आँखों से,

सारा जहान था दिख रहा अजनबी सा उसको,

लग रही माँ भी उसकी.. अजनबी सी उसको,

बना फिर इक नया.. माँ से पहचान का नाता,

फिर भी अकसर.. क्यूँ लगती माँ अजनबी सी,

गोद…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

!! वायु प्रवाह !! ©

 

!! वायु प्रवाह !! ©

(१)

वायु प्रवाह पर विचार !

अचानक उठा खयाल !

कितने होते हैं प्रकार ?

(२)

नाना हैं वायु प्रवाह !

कह चुकी संस्कृत भी !

वायु प्रकार के भेद भी !

मुख्य हैं तीन प्रकार !

उच्च निम्न मध्यम !

सप्तम सुप्त औसत स्वर !

(३)

भीषण मार सप्तम सुर…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 17, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

विराम चिह्न !! मेरे तुम्हारे नाम का ::: ©

विराम चिह्न !! मेरे तुम्हारे नाम का ::: ©



मैं जानती हूँ के साथ मिला..

कह दी मुझसे तुमने हर बात..

यत्र-तत्र-सर्वत्र करा दिया भान..

मुझ ही को मेरे होने का..



नाव पतवार के बहाने..

तो कभी..

तप्त ओस भाप-बादल के बहाने..



सूखे से जीवन में हरियाली सा..

ढाक-पत्तों…

Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 14, 2010 at 1:00am — 1 Comment

जिंदगी..©



जिंदगी..©

जाने कितने रंग दिखावे है यह जिंदगी..

बिखेरने थे उसे जो हमसे चाहे ये जिंदगी..

माया फैला फँसा हमको देती है ये जिंदगी..

इशारों पर अपने है नाचती ये जिंदगी..

ना चाहें पर अपना बोझ लदाती है जिंदगी..

अनचाहे ही हम पर गहराती है ये जिंदगी..

कैसे पायें आज़ादी हम पे हावी है ये जिंदगी..



जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (07 दिसंबर 2010)



Photography for both pictures :- Jogendra… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 7, 2010 at 11:26am — 1 Comment

दर पे मेरे ::: ©



दर पे मेरे ::: ©

सारी जिंदगी अकेला बैठा हुआ हूँ,
पलकें बिछाए हुए तेरे इंतज़ार में,
न जाने कब इस रात की सुबह हो,
और दर पे नाचीज़ के तू आ जाये..

_____जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (28 Nov 2010)


.

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 28, 2010 at 10:31pm — 1 Comment

गली का कुत्ता या इंसान ::: ©





गली का कुत्ता या इंसान ::: ©



गली के आवारा कुत्ते को रात में डर-डर कर पीछे को हटते देख कभी ख्याल आता है कि इन्हें कहीं ज़रा भी प्यार से पुचकार दिया जाये तो इनकी प्रतिक्रिया ही बदल जाती है... आँखों में उभरे जहाँ भर की प्रेम में लिथड़ी मासूमियत , कान कुछ पीछे को दबे हुए , लगातार दाँये-बाँये को डोलती पूँछ , गर्दन से लेकर पूँछ तक का शरीर सर्प मुद्रा में अनवरत लहराता हुआ और चारों पाँव जैसे असमंजस में आये हों कि उन्हें करना क्या… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 26, 2010 at 4:36pm — 1 Comment

मूँछों के झोंटे ::: ©





झबरीली मूंछों वाले लोगों को देख कर मेरा भी कटीली मूँछ रखने का मन हो आया.... अब आप देखें तो मेरी बेटी झलक की ओर से किसी मूंछों वाले के लिए कही गयी नयी बात क्या होगी...



मूँछों के झोंटे ::: ©



ताऊ जी ताऊ जी.....

मेले प्याले-प्याले ताऊ जी..

मेले छुई-मुई छे बचपन को..

लटका कल अपनी मूंछों में..

त्लिप्ती दिया कलो झोंटे देकल..

अनुपम छुन्दल हवादाल झूला..

सदृश्य अनुराग मेली… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 19, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

मिलना-बिछडना ::: ©







मिलना-बिछडना ::: ©



स्वप्न लोक से तू निकल आ ऐ रूपसी...

माना है जिंदगी चाहत का एक सिलसिला..

मिलना-बिछडना भी है लगा रहता यहाँ...

क्यूँ मांगती है आ सीख ले तू छीन लेना..

बिन मांगे न मिला है न तुझे मिलेगा कभी.. ©



जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 11-11-2010… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 11, 2010 at 5:34pm — 6 Comments

तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



कुछ घाव हरे कर गए है..

तुम्हारे ये दो आँसू मेरी..

संवेदना को गहरा कर गए हैं..

किसी पुराने जख्म का रिसना..

और भर-भर कर उसका..

रिसते चले जाना..

नियति बन गया है अब..



तुम्हारे मन की पीड़ा..

आँसू की पहली बूँद से..

उजागर हो रही है..

एक ह्रदय से दूसरे तक..

क्यों इस पीड़ा का गमन..

हो रहा है निरंतर..



सतत अविरल बहते आँसू..

मेरे… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 8, 2010 at 12:38am — No Comments

खयाल जिंदा रहे तेरा ::: ©

खयाल जिंदा रहे तेरा..

जिंदगी के पिघलने तक..

और मैं रहूँ आगोश में तेरे..

बन महकती साँसें तेरी..



तुझे पिघलाते हुए अब..

पिघल जाना मुकद्दर है..

बह गया देखो तरल बनकर..

अनजान अनदेखे नये..

ख्वाहिशों के सफर पर..



तुझे छोड़कर तुझे ढूँढने..

खामोश पथ का राही बन..

बेसाख्ता ही दूर तक..

निकल आया हूँ मैं..



सुनसान वीराने में तुझे पाना..

तेरी वीणा के तारों को..

नए सिरे से झंकृत..

कर पाना मुमकिन नहीं..

तुझसे दूर,… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 7, 2010 at 12:00am — 3 Comments

हूँ अभी गर्भ में ::: ©



► हूँ अभी गर्भ में ::: ©



हूँ अभी गर्भ में

ले रही आकर

हुआ ही है शुरू

स्पंदन ह्रदय का

कि जान लिया

कौन हूँ मैं

जताने लायक

हैं यंत्र नए

क्या करती



तैयार हूँ कट जाने को

आएगा जोड़ा यंत्रों का

होगी कोख कलंकित

कर रहे हैं पुर्जा-पुर्जा

अलग मुझे माँ से

न सोच न ही समझ है मुझे

करूँ क्रंदन कैसे

पर दर्द समझती हूँ

तडपा रहा कटना अंगों का

बिन… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 1, 2010 at 1:00am — 2 Comments

निर्झरण से झरण की ओर ::: ©



► निर्झरण से झरण की ओर ::: ©



समय का बहाव, पवन का प्रवाह,

सख्त भौंथरी चट्टान,

अब तीखे नक्श पाने लगी है,



न चाहते हुए भी,

मन का खुद को बरगलाना,

जैसे पानी का बर्फ बन,

चट्टान के भ्रम संग,

खुद को बरगलाना,



वक्ती थपेड़े पड़े हैं मगर,

आज नहीं कल ही सही,

बदलेगा प्रारब्ध मेरा भी,



क्षण-भंगुर हो,

भटक-चटक रही है,

चंचलता-कोमलता, मेरे मन की,

पिघल-बहाल हो रही… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on October 14, 2010 at 2:08am — 1 Comment

काँटा और गुहार :: (c)





Photography by : Jogendra Singh

_____________________________________



काँटा और गुहार :: © ( क्षणिका )





आसान नहीं है ...



पाँव से काँटा निकाल देना ...



हाथ बंधे हैं पीछे और ...



उसी ने बिखेरे थे यह कांटे ...



निकालने की जिससे ...



हमने करी गुहार है ...





जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 02 अक्टूबर 2010… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on October 3, 2010 at 2:30am — 3 Comments

घरौंदा कहूँ या सराय :: ©

.

::: घरौंदा कहूँ या सराय :: ©



प्रेम सागर से झील की ओर जाता हुआ ...

जैसे छोटी सी दुनिया बसाना चाहता हो ...

छोटे सपनों सा घरौंदा बसाना चाहता हो ...



कोई आये कह दे मुझे रह लूँ बन पथिक ...

कुछ समय के लिए , तेरे इस आसरे में ...

सोच रहा हूँ अब इसे घरौंदा कहूँ या सराय ...

आना है तुम्हें फिर से चले जाने के लिए ...



तुम न… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 29, 2010 at 7:30pm — 1 Comment

::: गुलिस्तान ::: ©




::: गुलिस्तान ::: © (मेरी नयी क्षणिका )


कहने को तो तुम्हें दे देने थे, यह फूल मगर, ज़माने को यह गवारा न था !!
सूख चुके हैं फूल मगर, अब भी तत्पर हूँ देने को यह गुलिस्तान तुम्हें .. !!

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 25 सितम्बर 2010 )


.

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 26, 2010 at 1:00am — 6 Comments

Monthly Archives

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, समयाभाव के चलते निदान न कर सकने का खेद है, लेकिन आदरणीय अमित जी ने बेहतर…"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. ऋचा जी, ग़ज़ल पर आपकी हौसला-अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. लक्ष्मण जी, आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service