पावस के कुछ दोहे-
तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ
सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.
मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार
तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.
सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन मन हुआ,सावन सावन देह.
पावस में ऐसे मदन,अकुलाता है प्राण
इंद्रधनुष पर साधता,है बूँदों के बाण.
इत पानी का बुलबुला,उत पानी की बूँद
पानी पानी हो गये,दोनों आँखें मूँद.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत मनोहारी दोहे , बधाई राजेश जी
बहुत मनोहारी दोहे लिखे हैं आपने, आदरणीय। बधाई।
आदरणीय राजेश शर्माजी, अपरिहार्य कारणों से आज आपकी प्रस्तुति पर आ पा हा हूँ. और, भाईजी, मुग्ध हूँ. हृदय से बधाई कह रहा हूँ.
सादर
बहुत खूबसूरत मनमोहक दोहे कहे हैं आदरणीय राजेश शर्मा जी..
पाँचों दोहे एक से बढ़ कर एक हैं.
हार्दिक बधाई
सादर.
सभी आदरणीय ,श्री जवाहर लाल सिंह जी,आशीष नैथानी सलिल जी,अभिनव अरुण जी,जीतेन्द्र गीत जी,बृजेश नीरज जी,महीमा श्री जी,राणा प्रताप सिंह जी,डी पी माथुर जी,सभी का बहुत-बहुत आभार .आपकीसब की प्रशंसा से मन पुलकित हैं ,काश! सब
महानुभावों का आभार अलग अलग मानता .विलंब के लिए मुझे क्षमा करें .आशा है इसी प्रकार मेरा उत्साह वर्धन करते रहेंगे,
बहुत ही सुंदर! सादर बधाई!
सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन मन हुआ,सावन सावन देह.
वाह वाह बढ़िया दोहे आदरणीय !!!
वाह वाह पावस के सुन्दर हरे भरे रूप सम , भावपूर्ण मनोरम दोहे , आदरणीय श्री राजेश जी , आप प्रकट हुए ..बहुत बहुत स्वागत ...
पावस में ऐसे मदन,अकुलाता है प्राण
इंद्रधनुष पर साधता,है बूँदों के बाण.
खूबसूरत शब्द चित्र !!
लिखते और शेयर करते रहिये ... ताकि हम सब आपकी ऐसी ही मधुर रचनाओं का आस्वादन कर आनंदित होते रहे !!
आदरणीय राजेश जी, बहुत ही सहज सुंदर दोहावली, हार्दिक बधाई
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