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फिर वही गीत दुहराओ प्रिय

 

मन की सूखी धरती पर

कुछ बूंद प्रेम जल छलकाओ प्रिय

वीरान हो चला है हृदय

कुछ प्रेम पुष खिलाओ प्रिय

फिर वही गीत दुहराओ....................

 

भग्न हदय सुप्त मन प्राण

अभिशापित सा हो चला जीवन

गहराती धुंध के बादल

कुछ  रशमियां बिखराओ प्रिय

फिर वही गीत दुहराओ...............अन्नपूर्णा

 

मौलिक एवं अप्रकाशित  

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2013 at 6:50am

मन की सूखी धरती पर

कुछ बूंद प्रेम जल छलकाओ प्रिय

वीरान हो चला है हृदय

कुछ प्रेम पुष खिलाओ प्रिय...शिल्प की बहुत जानकारी तो नहीं पर भाव मन को छू गए ..प्रेम जल प्रेम पुष्प ..इस प्रेम मय होने के अंदाज का भी जवाब नहीं ..सादर बधाई के साथ 

Comment by annapurna bajpai on July 24, 2013 at 7:27pm

आपका हार्दिक आभार आ० बृजेश जी ।

Comment by बृजेश नीरज on July 24, 2013 at 5:50pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई।
इस विधा में आपका प्रयास सराहनीय है। मात्रा और गेयता पर कुछ और ध्यान दीजिए। भाव अच्छे ही होते हैं आपकी रचना के।
सादर!

Comment by annapurna bajpai on July 24, 2013 at 5:00pm

adarniy ram shiromani ji , apka hardik dhanyvad .

Comment by annapurna bajpai on July 24, 2013 at 4:59pm

adarniya prachi ji , apka hardik abhar .

Comment by annapurna bajpai on July 24, 2013 at 4:56pm

adarniya coontee ji , apka hardik dhanyvad .

Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 4:15pm

आदरणीया सुन्दर भावों से सजी सुन्दर रचना  //हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 3:23pm

मन की शुष्क धरती पर प्रिय प्रेम बूंदों का आह्वाहन करती सुकोमल भावनाएं 

हार्दिक बधाई अभिव्यक्ति पर 

सादर.

Comment by coontee mukerji on July 24, 2013 at 3:14pm

मन की सूखी धरती पर

कुछ बूंद प्रेम जल छलकाओ प्रिय

वीरान हो चला है हृदय

कुछ प्रेम पुष खिलाओ प्रिय

फिर वही गीत दुहराओ..........बहुत सुंदर गीत

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