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जब सोचने का नज़रिया
बदल जाये तो
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं
खो जाया करती हैं...
काफिले के संग
चल निकलो तो बात अलग,
वर्ना परछाईं भी अक्सर
साथ छोड़ जाया करती है...
वो लोग अलग होते हैं
जो डूब के पार निकलते हैं,
हौसलों से तो बिन पंख भी
ऊँची उडान भरी जाया करती है...
स्वार्थी की कोई ज़ात नहीं
जानवरों सा जीवन उसका,
इंसान को तो चुल्लू भर पानी में भी
मौत आ जाया करती है...
ऊपर वाले ने भी
खेल अजीब खेला है,
जो दुनिया उजाड़े किसी की
किस्मत उसी को मिल जाया करती है,
'पियू' और क्या लिखे उसके सामने
प्यार करने वालों की तो अक्सर
लकीरें भी धोखा दे जाया करती हैं...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)


.......प्रियंका ''पियू ''

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Comment by Priyanka singh on July 18, 2013 at 3:12pm

राज साहब आभार आपका .....

Comment by Priyanka singh on July 18, 2013 at 3:11pm

शुक्रिया .....कुंती जी...

Comment by Priyanka singh on July 18, 2013 at 3:10pm

.अरुन शर्मा जी ..शुक्रिया सर आपकी इस ख़ास दाद के लिया बहुत बहुत शुक्रिया .....सराहते रहिये यूँही ....शुक्रिया 

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:35pm

आदरणीया यदि नज्म के बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध करा दे ंतो बड़ी कृपा होगी। मुझे इस विधा के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
सादर!

Comment by राज़ नवादवी on July 18, 2013 at 12:33pm

जब सोचने का नज़रिया 
बदल जाये तो 
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं 
खो जाया करती हैं...

बहुत सुन्दर!

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 12:18pm

अपनी मनोभावनाओं को जैसे आपने मोतियों की माला में पिरो दिया है.प्रियंका जी. बहुत सुंदर.

सादर

कुंती

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 18, 2013 at 11:35am

स्वार्थी की कोई ज़ात नहीं
जानवरों सा जीवन उसका,
इंसान को तो चुल्लू भर पानी में भी
मौत आ जाया करती है... .... वाह वाह वाह लाजवाब पंक्तियाँ आदरणीय प्रियंका जी बहुत ही सुन्दर रचना इन पंक्तियों पर विशेष तौर से बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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