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मंद हवा की

लहरों पर बैठ

आकाश ने

हाथों में लिया

सितारों का अक्षत,

अरूणोदय का कुमकुम,

ओस की बूंदें,

बाग से

पुष्प, घास

और तिरोहित कर दी

रात

क्षितिज में।

              - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on July 23, 2013 at 8:27pm

आदरणीया अन्नपूर्णा बहन आपका हार्दिक आभार!

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:56pm

आपकी मन मोहती रचनाओं के लिए आपको बधाई , आदरणीय बृजेश भाई जी

Comment by बृजेश नीरज on July 14, 2013 at 8:29pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Vindu Babu on July 14, 2013 at 6:07pm
प्रात: के प्राकृतिक सौन्दर्य का जो वर्णन आपने प्रतीकात्मक ढंग से किया है,वास्तव में प्रशंसनीय है।
सादर बधाई आपको आदरणीय।
Comment by बृजेश नीरज on July 13, 2013 at 5:21pm

आदरणीय अरून भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on July 13, 2013 at 5:21pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार!
आपकी समालोचना रास्ता दिखाती है और अनुमोदन बल प्रदान करता है।

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2013 at 1:51pm

अहा!!!! बेहतरीन शानदार लाजवाब प्रस्तुति आदरणीय बृजेश भाई जी वाह क्या कहने ढेरों बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2013 at 11:54pm

वाह ! प्रातःवन्दन का इतना सात्विक और शाब्दिक स्वरूप मुग्ध कर गया.. .

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on July 12, 2013 at 8:11pm

आदरणीय नीरज जी आपका आभार!

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 8:00pm

वाह बहुत ही सुन्दर 

कृपया ध्यान दे...

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