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याद दिन हम को सुहाने आ रहे हैं

याद दिन  हम  को सुहाने आ  रहे हैं

फिर से उन यादों के बादल छा रहे हैं 

हमने घर अपनें बनाये रेत  पर जब

याद  वो  बचपन के मंजर आ रहे हैं

कोयलों  नें धुन  सुरीली  छेड़  दी है

गीत  भी    दीवानें  भौंरे    गा रहे हैं

कर  दिया है आज टुकड़े टुकड़े दिल

छोड़ कर  हम बज्म  सारी जा रहे हैं

माल  पूआ  खाए मुद्दत  हो गयी थी

ख्वाब में   देखा अभी  हम खा रहे हैं

आशु ये  महफ़िल हसीनो  से भरी है

जलवे  पर  इनके  हमें भरमा रहे हैं

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 2, 2013 at 9:37pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है, शेर अच्छे लगे, एक बार इस मिसरा का वजन देख लें … 

कर दिया है आज टुकड़े टुकड़े दिल

 बधाई इस प्रस्तुति पर . 

Comment by ram shiromani pathak on July 2, 2013 at 9:21pm

आदरणीय  मिश्रा जी सुन्दर रचना है आपकी //हार्दिक बधाई 

Comment by रविकर on July 2, 2013 at 9:15pm

शुभकामनायें आदरणीय-
बढ़िया प्रस्तुति-

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