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सिर्फ तुम्हारे लिए

तेरे अधरों की मुस्कान,

भरती मेरे तन में प्राण.

जीवन की ऊर्जा हो तुम,

साँसों की सरगम की तान.

मैं सीप तुम मेरा मोती ,

मैं दीपक तुम मेरी ज्योति.

कभी पूर्ण न मैं हो पाता ,

संग मेरे जो तुम न होती.

किन्तु दुख है कि मैं तुमको,

कभी नहीं खुश रख पाया .

तुमने मुझसे पाया घाटा ,

मैंने केवल लाभ कमाया.

बस खुदा से यही प्रार्थना,

खुश रक्खे तुझको हरदम.

मेरे प्राणों की कीमत भी,

तेरी खुशी के लिए है कम.

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित- प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’)

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Comment by Pradeep Bahuguna Darpan on July 1, 2013 at 12:41pm
bahut bahut aabhar Ravikar ji..
Comment by रविकर on July 1, 2013 at 10:26am

मन-दर्पण के भावों को जो देख सकेगा सच्चा सच्चा।

कभी नहीं हैरानी होगी, कभी नहीं होगा भौचक्का ॥

बहुत बहुत साधुवाद-

शुभकामनायें आदरणीय-

Comment by Pradeep Bahuguna Darpan on July 1, 2013 at 8:07am

आप सभी की महत्वपूर्ण टिप्पणियों, प्यार और आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत आभार .... यह रचना महज एक कविता नहीं , बल्कि सच्चे प्रेम की स्वीकारोक्ति है.. आपको पसंद आयी , लेखन सार्थक हो गया .... 

Comment by ram shiromani pathak on June 30, 2013 at 8:44pm

प्रदीप भाई,सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको //

Comment by शुभांगना सिद्धि on June 30, 2013 at 8:28pm

किन्तु दुख है कि मैं तुमको,

कभी नहीं खुश रख पाया .

तुमने मुझसे पाया घाटा ,

मैंने केवल लाभ कमाया., क्या सच में ये कोई आदमी सोच पाता होगा ??

बहुत बहुत अच्छी 

Comment by वेदिका on June 30, 2013 at 6:41pm

कभी कभी कोई स्वीकृति, देख के सहज विश्वास नही होता!!

खूब सूरत प्राइश्चित्त!!    

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2013 at 4:48pm
आदरणीय..प्रदीप भाई, बहुत सुंदर रचना, भावना से ओत प्रोत व सरल पंक्तियो के लिए शुभकामनाऐं...""..मैंसीपतुम मेरामोती,

मैंदीपकतुम मेरीज्योति.

कभीपूर्ण न मैंहोपाता,

संगमेरे जोतुम नहोती.

किन्तु दुखहै किमैंतुमको,

कभीनहीं खुशरख पाया.""
Comment by Dr Babban Jee on June 30, 2013 at 4:21pm

Behtar ! Badhai

Comment by Harish Upreti "Karan" on June 30, 2013 at 4:03pm

तेरे अधरों की मुस्कान भरती मेरे तन में प्राण .....बहुत खूब...

Comment by coontee mukerji on June 30, 2013 at 3:50pm

बहुत ही सुंदर व अच्छी प्रस्तुति.....!सादर

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