For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!! मेरी लाडो !! एक प्रयास शक्ति को जगाने का

!! मेरी लाडो !!

 “ मेरी लाडो ” समर्पित है उन तमाम बहन बेटियो को जो किसी न किसी हादसो के कारण से अपने वजूद अपने अस्तिव को भुला चुकी है या फिर हार मानके अपनी किस्मत को दोष दे रही है । ये एक प्रयास है शक्ति को उसकी शक्ति याद दिलाने का उसे उसके वास्तिवक  रुप मे लाने का । ” 

चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो  ।

तुझे बनना है अब दुर्ग़ा माँ काली माँ मेरी लाडो ।

बहुत सह चुकी चुप रह चुकी, अब हुंकार भर लाडो । 

पोछले आँसू अब आँखो मे ज्वाला भर मेरी लाडो ॥

छोड के घर बाबुल का तूने घर उसका बसाया है ।

अपर्ण तुने किया सर्वश प्यार अपना लुटाया है ।

तू तकती रही रातो को राहे अपने साजन की ।

वो सोता रहा आगोश मे तेरी सौतन की ।

तू  घुटती रही मरती रही  सिसकती रही लाडो

फिर भी शिकवा न शिकायत की तुने कभी लाडो ।

चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो  ।।

उतार चुँडीया हाथो मे अब खडग् धर मेरी लाडो  ॥1॥

 

सहे सौ दर्द जब तुने तो, एक इंसा को जाया है ।

जागी रात भर खुद तू , मगर उसको सुलाया है ।

बन के हैवान उसने ही, तुझपे जुल्मो को  ढाया है ।

सताया है तुझे जिसने, उसे अब तु सता लाडो ।

चल अब उठ मेरी बहना, मेरी बेटी मेरी लाडो  ।

दिया है जन्म तुने ही, तो अब हर प्राण मेरी लाडो ॥ 2 ॥

 

लुटेरा तेरी अस्मत का, अब बच के न जा पाये ।

गिरे वो हाथ धरा पे जो तेरे दामन को छू जाये ।

दुशासन हो कोई भी अब वो बच के न जा पाये  ।

अलग हो शीश वो धड से बुरी नजर जो  उठाये ।

यहा बैठा है घर घर मे एक रावण मेरी लाडो

ना आयेगा कोई राम न हनुमंत मेरी लाडो ।

बन के ज्वाला जलाना है तुझे अब लंका मेरी लाडो ।

चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो  ।।

बन के दामिनी  अब , तुझको गिरना है मेरी लाडो ॥ 3 ॥

 

गुजर गई रात अब काली  नया सवेरा आया है ।

बिता पतझड का ये मौसम की अब रितुराज आया है ।

छिना है हक जो तेरा, उसे अब फिर से पाना है ।

  मिटा है जो वजूद तेरा उसे फिर से बनाना है ।

भुलाकर हादसो को अब तुझे जीना है मेरी लाडो ।

दिशाहीन इस नदी को नई दिशा देना है मेरी लाडो ।

चल अब उठ मेरी बहना मेरी बेटी मेरी लाडो  ।।

तुझे बनना है लक्ष्मीबाई रानी दुर्गावती लाडो  ।। 4 ॥

  

उठा कर हाथ को तुझको अब ये संकल्प करना है ।

न अहिल्ल्या की तरह तुझको अब पाषाण बनना है ।

न सीता की तरह तुझको अब अग्नि पे चलना है ।

न हारी जायगी अब जुआ मे कोई भी लाडो ।

तु अब अबला नही जो हाट मे बेची जायेगी लाडो

लगा ललकार ऐसी की तीनो लोक काँपे मेरी लाडो  ।

तु शक्ति है तुझे अब शक्ति दिखाना है मेरी लाडो  ।। 5॥

चल अब उठ मेरी बहना, मेरी बेटी मेरी लाडो  ।

तुझे बनना है अब दुर्ग़ा माँ काली माँ मेरी लाडो ।

 

 

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 1170

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत नेमा on June 27, 2013 at 4:56pm

आ0 श्री सौरभ सर , मै आप का क्षमा प्रार्थी हू , ये मेरे लेखन की त्रुटी है  पर मेरा ऐसा कतई प्रयास या उद्देश्य नही था की मै भबिष्य मे आप के आशीष से वचित हो जाऊ । मै अभी नौसिखिया हू  और  आप के सामने मै कुछ भी नही हू ,,,,,,एक बार पूरे दिल से आप से क्षमा चाहता हू ।   भबिष्य मै  आप का आशीष सदा मिलता रहे ...........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 27, 2013 at 4:42pm

//आप के सुझाव पर अमल किया जायेगा//

इस तरह के वाक्यों से बचने का प्रयास करें आदरणीय जो वाच्य के अनुसार कर्मवाच्य के हों. अन्यथा आपकी रचनाओं पर आवश्यक सुझाव के प्रति अनाग्रही रहेंगे.

आपके इस तरह से लिखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपको मेरे सुझाव पसंद नहीं आये या आप मेरे सुझावों आदि को प्रश्रय देना नहीं चाहते. 

शुभम्

Comment by बसंत नेमा on June 27, 2013 at 11:28am

आ0 राम शिरोमणी जी रचना आप को पसन्द आयी उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on June 27, 2013 at 11:27am

आ0 जितेन्द्र जी आप की  शुभकामनाओ के लिये बहुत बहुत  आभार .धन्यवाद 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 10:12pm
आदरणीय..बसंत जी, सही विषय पर सुंदर रचना की प्रस्तुति के लिए शुभकामनाऐ
Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 12:43pm

आ0 बसंत नेमा जी ,बहुत सुन्दर रचना है //हार्दिक बधाई

Comment by बसंत नेमा on June 26, 2013 at 11:53am

आ0 रविकर जी बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on June 26, 2013 at 11:53am

आ0 सौरभ सर ... रचना को पसन्द किया उसके लिये बहुत बहुत आभार , आप के सुझाव पर अमल किया जायेगा ....धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 11:50am

पुरुषवर्ग द्वारा नारीवर्ग के ऊपर हुए/ हो रहे अत्याचारों की अच्छी खबर लेने की कोशिश हुई है. इस तरह का आक्रोश एक सीमा तक उचित भी है. लेकिन दुखती सचाई यही है कि बेटियों पर सबसे क्रूर अत्याचार नारीवर्ग ही करता है. विवाहोपरांत जिस मानसिक प्रताड़ना से बेटियाँ गुजरती हैं या पुरुषवर्ग के तथाथित बेटों द्वारा प्रताड़ित होती हैं उसके पीछे क्या ’मेरा बेटा सर्वश्रेष्ठ’ की मानसिकता नहीं है ? आगे कुछ कहना उचित नहीं.. .

वैसे रचना-प्रयास हेतु यह रचना उचित है. लेकिन शिल्प और काव्यकर्म की कसौटी पर इसे कसना रचनाकार का पहला दायित्व होना चाहिये. ओबीओ के मंच से किसी वाद या मंतव्य को प्रश्रय देने की कोई योजना नहीं है, बल्कि रचनाकार रचनाकर्म हेतु सकारात्मक प्रयास करें और रचनात्मक संवेदशीलता के प्रति आग्रही हों, यह अवश्य है. इस कविता को कविता होने की कसौटी को पार करना अभी शेष है.

शुभेच्छाएँ

Comment by रविकर on June 26, 2013 at 11:26am

बढ़िया बहाव-
शुभकामनायें आदरणीय-

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service