For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उड़ गए पखेरू  
अब उजाड़ वीराने में
खुद को बहलाती हूँ
सूख गया है नीर
फ़िर भी
नदी तो कहलाती हूँ।


लहरों की चंचलता
थिरकन, चपलता
अब भी है चस्पा
इस दमकती रेत पर
उन अवशेषों को देख
जी उठती हूँ।


कुछ स्वार्थी, समर्थ हाथ
बढ़ चले हैं रेत की ओर
देख रही हूँ, तड़प रही हूँ
मेरी स्मृतियों से
चिन रहे अपने मकान
और मैं निस्सहाय
देख रही हूँ लाचार
निशब्द, निष्‍प्राण।


कूल पर हैं शूल

शेष झाड़-झंखाड़
सूख गए हैं हरियल गाछ
पीत तृण हैं, सूखी घास
मिट रहे हैं चिन्ह जीवन के
जो साक्षी थे मेरे होने के।


मेरी रेत की नींव पर
खड़ा है आलीशान मकान
घुमावदार जिसके कंगूरे
रूआबदार हैं जिसके छज्जे
जा बैठा है जिन पर
मेरा प्राण-प्रिय पखेरू
चुगता है दाना प्रेम से
गृहस्वामिनी के सुकोमल हाथों से।


मैं भी नदी कहाँ?
खंदक रह गई हूँ
नहीं आता अब कोई यहाँ 
न ही बाकी जीवन के निशां
खोजती हूँ जब वज़ूद यहाँ
पाती हूँ उजड़ने की दास्तां।

[मौलिक और अप्रकाशित रचना]


-  सुशीला श्योराण ’शील’

 

Views: 698

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sushila shivran on June 29, 2013 at 2:03pm

आप सभी सुधि पाठकों का ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ।

सादर

Comment by sushila shivran on June 26, 2013 at 5:26pm

कविता पर आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए दिल से आभार ।
@ aman kumar जी आपकी विशेष रूप से आभारी रहूँगी यदि यह मार्गदर्शन करें कि प्रवाह कहाँ अवरूद्ध लगा आपको?

सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 1:12pm

आदरणीया सुशीला जी,सुंदर व भावनात्मक रचना//हार्दिक बधाई

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2013 at 11:15pm

आदरणीया सुशीला जी नदी की पीड़ा व्यक्त करती आपकी कविता बहुत भाव पूर्ण है .बहुत आभार .

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 10:12pm

आदरणीया सुशीला जी बहुत सुन्दर! मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 2:47pm

उड़ गए पखेरू   
अब उजाड़ वीराने में
खुद को बहलाती हूँ
सूख गया है नीर
फ़िर भी
नदी तो कहलाती हूँ। ……… क्या अंतर है एक स्त्री और एक माँ की पीड़ा में 

रचना पर बधाई !

Comment by बसंत नेमा on June 24, 2013 at 12:31pm

नदी के जज्बातो को उजागर  करती रचना ..बधाई ///

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 11:13am

आदरणीया सुशीला जी सर्वप्रथम ओ बी ओ में आपका हार्दिक स्वागत है, बहुत सी सुन्दर सुकोमल भावों से भरी बेहतरीन रचना रची है आपने अंतिम पंक्तियों तो हृदयस्पर्श कर गईं मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by aman kumar on June 24, 2013 at 10:01am

अति सुंदर प्रवह के मध्य कही कही रुकबत आती रही है .....

पर भावना , और स्थिति  दोनों को आपने सामने रखा है बधाई ! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 24, 2013 at 7:58am
आदरणीया..शुशीला जी, सुंदर व भावनात्मक रचना की प्रस्तुति....शुभकामनाऐं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service