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sushila shivran
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Sushila shivran's Blog

नदी और पखेरू

उड़ गए पखेरू  

अब उजाड़ वीराने में

खुद को बहलाती हूँ

सूख गया है नीर

फ़िर भी

नदी तो कहलाती हूँ।





लहरों की चंचलता

थिरकन, चपलता

अब भी है चस्पा

इस दमकती रेत पर

उन अवशेषों को देख

जी उठती हूँ।





कुछ स्वार्थी, समर्थ हाथ

बढ़ चले हैं रेत की ओर

देख रही हूँ, तड़प रही हूँ

मेरी स्मृतियों से

चिन रहे अपने मकान

और मैं निस्सहाय

देख रही हूँ लाचार

निशब्द, निष्‍प्राण।





कूल…

Continue

Posted on June 23, 2013 at 11:22am — 13 Comments

Comment Wall (4 comments)

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At 9:07am on June 23, 2013, D P Mathur said…

आप शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी हैं जल्दी से कलम उठाओ और कुछ पंक्तियाँ उकेर कर ओ बी ओ पर साझा कर दो बस!

At 8:51am on June 23, 2013, sushila shivran said…

धन्यवाद D P Mathur जी ।
शुभ दिन

At 8:36am on June 23, 2013, D P Mathur said…

आदरणीया सुशीला जी ओ बी ओ पर आपका स्वागत है  । 

At 8:32am on June 23, 2013, sushila shivran said…

सभी सुधि जनों को सुप्रभात। आप सबसे जुड़ कर बहुत प्रसन्न हूँ और आशा करती हूँ कि OBO और इसके प्रबुद्ध सदस्यों से काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा।

 
 
 

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