For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किस काबिल किया - ग़ज़ल

मालिक ने इस दौड़ में यूं ही नहीं शामिल किया,

फ़क्त ये जानना ज़रूरी है कि किस काबिल किया |

 

कहते रहे जो ज़िंदगी भर खुदा ही आख़िरी ज़रुरत है,

उन्होंने अपनी रूह तक को भी ना हासिल किया |

 

बहुत कोशिशें की मगर पढ़ ना सके उस इबारत को,

जिन हर्फों ने राम और रहमान को फ़ाज़िल किया|

 

सोचा वो धुँआ थी, बिखर के मिल गयी हवाओं में

हर अधूरी ख्वाहिश को इस तरहा मुकम्मिल किया|

 

मैं ना ग़ालिब था, ना मीर ना ही और कोई शायर

कैसे अश्क बहाता मैं, उसने मुझे संगदिल किया|

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 407

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 10:12pm

आपके प्रयास पर आपको बधाई! 

Comment by विजय मिश्र on June 12, 2013 at 6:04pm

सचमुच आज का आदमी अपनी आत्मा और अंतरमन के स्वर सुनने में भी असमर्थ एक पथराया हुआ जीव है . चंद्रेश जी ,बहुत ही सुन्दर भाव उकेरे हैं आपने . बधाई .

Comment by Roshni Dhir on June 12, 2013 at 12:09pm

चंद्रेश कुमार जी 

कहते रहे जो ज़िंदगी भर खुदा ही आख़िरी ज़रुरत है,

उन्होंने अपनी रूह तक को भी ना हासिल किया |..

बहुत सुंदर गज़ल ... हर पंक्ति सुंदर 

आभार 

Comment by Shyam Narain Verma on June 11, 2013 at 5:03pm

सुदर अभिव्यक्ति............................

Comment by वीनस केसरी on June 11, 2013 at 3:39pm

bhai ji ghazal bhi kahte hain khud ko shair bhi nahi mante ... aapki yah adaa bhaa gai :))))))))))

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 11, 2013 at 8:43am

जीतेन्द्र जी, आपकी दाद के लिए तहे दिल से धन्यवाद | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 11, 2013 at 3:14am
आदरणीय..चंद्रेश जी, वाह वाह क्या खूबसूरत गजल पेश की है, दाद कुबूल कीजीऐ..."सोचा वो धुंआ थी, बिखर के मिल गयी हवाओं मे ..हर अधूरी ख्वाहिश को इस तरहा मुकम्मिल किया! मै ना गालिब था, ना मीर ना ही कोई शायर, कैसे अश्क बहाता मैं, उसने मुझे संगदिल किया!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service