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(छंद - मनहरण घनाक्षरी)


गोमुखी प्रवाह जानिये पवित्र संसृता  कि  भारतीय धर्म-कर्म  वारती बही सदा
दत्त-चित्त निष्ठ धार सत्य-शुद्ध वाहिनी कुकर्म तार पीढ़ियाँ उबारती रही सदा
पाप नाशिनी सदैव पाप तारती रही उछिष्ट औ’ अभक्ष्य किन्तु धारती गही सदा    
क्षुद्र  वंशजों व  पुत्र  के विचार राक्षसी  सदैव  मौन  झेलती  पखारती  रही सदा

हम कृतघ्न पुत्र हैं या दानवी प्रभाव है, स्वार्थ औ प्रमाद में ज्यों लिप्त हैं वो क्या कहें
ममत्व की हो गोद या सुरम्यता कारुण्य की, नकारते रहे सदा मूढ़ता को क्या कहें
इस धरा को सींचती दुलार प्यार भाव से, गंग-धार संग जो कुछ किया सो क्या कहें
अमर्त्य शास्त्र से धनी प्रबुद्धता असीम यों,  आत्महंत की प्रबल चाहना को क्या कहें

शस्य-श्यामला  सघन,  रंग-रूप से मुखर देवलोक की नदी  है आज रुग्ण दाह से
लोभ मोह स्वार्थ मद  पोर-पोर घाव बन  रोम-रोम रीसते हैं,  हूकती है  आह से
जो कपिल की आग के विरुद्ध सौम्य थी बही अस्त-पस्त-लस्त आज दानवी उछाह से
उत्स है जो सभ्यता व उच्च संस्कार की वो सुरनदी की धार आज रिक्त है प्रवाह से


*******************
--सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2013 at 8:01am

भाई आशुतोष जी, आपका उत्साहवर्द्धन सकारात्मक प्रभाव देता है.

सहयोग बना रहे. 

शुभ-शुभ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 26, 2013 at 12:44am

aaderneey saurabh jee ...is rachna ko padhne pa kuchh baisa hee anand mila jaisa manch par kai subikhyat kavion ko sunne par milta tha ..bina takneekee jankaaree ke maine kai kavisammelano me shirkat kee lekin aaj is rachna ko padhkar pooree tarah se bishwas ho gaya kee sahitya me kitnee urja hotee hai ..bilkul jaise ganga bahtee hai baise hee bahta chala jaata hai paathak ..aapkee bidwata, sahitya srijanta, aaur sahity unnayn mein aapkee mahtee bhoomika nibhane aaur ham jaise sahityadhar heen logon ko apna bahumulya samay pradan karne ke jajwe ko dil kee anant gahraiyon me uthee bhavnaon ke madhyam se salam karna chahta hoon ..apna ashirwad eun hee banaye rakhein ..sadar naman ke sath


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 5:06pm

इस उदार प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नूतन जी

सादर

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 25, 2013 at 8:59am

आदरणीय सौरभ जी ! गंग की प्रवाह सी प्रवाहमयी आपकी यह छंदात्मक रचना आज की विपदा पर मानव लोभ मोह और स्वार्थ की भूमिका भी बांधती है... बहुत बहुत सुन्दर रचना ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2013 at 1:48pm

सादर आभार आदरणीया मंजरी जी

Comment by mrs manjari pandey on June 20, 2013 at 11:05pm

आदरणीय सौरभ जी अप्रतिम रचना के लिए नमन करती हूँ आपको . मन के आँगन में कुछ स्फुरित हुआ  मन प्रफुल्लित हुआ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 20, 2013 at 7:57am

गंगा की दशा पर, उससे अपने तबके और अबके सम्बन्ध पर इस रचना के माध्यम से कुछ निवेदन करने का प्रयास किया है. आप सुधीजनों को प्रस्तुत रचना पसंद आयी और गंग-धार की विवशता संप्रेषित हो पायी, मेरा रचनाकर्म सफल हुआ.

आप सभी सुधी पाठकों को मेरा सादर आभार.

गंगा ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति के साथ जिस तरह हम व्यवहार कर रहे हैं वह परस्पर निबाहना नहीं खुल्लमखुल्ला शोषण है. प्रकृति अपने ढंग से फिर व्यवहार करने लगे तो झुंझलाना नहीं चाहिये.

सादर

Comment by vijay nikore on June 19, 2013 at 3:35pm

इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई, आदरणीय सौरभ भाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 9:41am

आज कई दिनों के बाद कुछ खाली समय मिला है और बरबस ओबीओ की पोस्ट्स की और खिंचा चला आया ...

निःसंदेह जो प्रवाह और उतार चढाव का वाईव्रेशन है वह हमारे मन और तन दोनों को शुद्ध करता चला जाता है ...
यह ओम में जाप करने जैसा है 

इस यशस्वी रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 11:00pm

आ0 गुरूवर सौरभ सर जी,   अद्भुत चमत्कृत गंगधार प्रवाह सहित अतिसुरम्य छन्द मन को मोहने वाली परमसुखदायी मनहरण घनाक्षरी अतीव लुभावनी लगी।  तहेदिल से हार्दिक बधाई व सादर प्रणाम स्वीकार करें।  सादर,

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