For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बारिशो के 

मौसम में 
मन जब 
चाहे किसी के 
साथ दूर तक 
ठहल आने को 
मेरा ख्याल तो 
नहीं आता न 
तुम को 
किसी अंजान
शहर में 
घूमते हुए 
नजरें जब 
किसी अजनबी 
चेहरे में 
तलाशने लगे 
किसी खास 
शख्स को 
मेरा ख्याल तो 
नहीं आता न 
तुम को 
या फिर 
निपट अकेलेपन में 
चाह हो 
किसी कंधे की 
किसी स्पर्श की 
दिल खोल के रखने को 
जी चाहे जब 
मैं जानती हूँ 
फिर भी 
जाने क्यूँ 
होता है ये यकीं 
तुम्हारे ख्यालो में 
मैं भी कहीं तो 
महकती होंगी न.... 

मौलिक एंव अप्रकाशित 

Views: 755

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 11:38am

आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी, 
आगे कमियों को दूर करने का प्रयास करुँगी | आप का ह्रदय से आभार

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 11:35am

आदरणीय Jitendra Pastariya जी, 

आप की सरहना ओर शुभकामनाओं के लिए आप का ह्रदय से आभार 

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 11:33am

आदरणीय संदीप जी, 

मैं जानती हूँ 
फिर भी 
जाने क्यूँ 
होता है ये यकीं 
तुम्हारे ख्यालो में 
मैं भी कहीं तो 
महकती होंगी न....  सीधा सा अर्थ है कि मैं जानती हूँ ऐसा मुमकिन नहीं मगर दिल को लगता है कि उनके ख्यालो में मैं भी कहीं तो रहती होंगी 
वर्तनी दोष कि ओर ध्यान दिलाने के लिए आप का आभार आगे से इस कमी को दूर करने का प्रयास करुँगी | 
ये मेरे ही लिखे का दोष है जिसमे भावनाये स्पष्ट नहीं हो पा रही है  क्षमा मांग के शर्मिंदा मत कीजिये 

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 10:57pm

आदरणीया इस रचना को इस तरह लिखने में क्या परेशानी थी?

बारिशो के मौसम में 

मन जब चाहे

किसी के साथ

दूर तक ठहल आने को 

मेरा ख्याल तो नहीं आता न 

तुम को !

 

किसी अंजान शहर में 

घूमते हुए नजरें जब 

किसी अजनबी चेहरे में 

तलाशने लगे 

किसी खास शख्स को 

मेरा ख्याल तो नहीं आता न 

तुम को !

 

इस अंतिम बंद में कलम बहक सी गयी लगती है। कथ्य स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। इसे एक बार फिर से देखकर संयमित कर लें।

 

या फिर 

निपट अकेलेपन में 

चाह हो किसी कंधे की 

किसी स्पर्श की 

दिल खोल के रखने को 

जी चाहे जब 

मैं जानती हूँ 

फिर भी जाने क्यूँ 

होता है ये यकीं 

तुम्हारे ख्यालो में 

मैं भी कहीं तो 

महकती होंगी न.... 

 

अतुकांत को जितने सधे ढंग से आप लिखने का प्रयास करेंगी रचना की सुंदरता उतनी ही बढ़ेगी, भाव उतने ही स्पष्ट होंगे।

नामचीन कवियों की रचनायें पढ़ें। आदरणीय सौरभ जी के अतुकांत जो यहां ओबीओ पर ही पोस्ट हैं उन्हें देखें। आपको रास्ता मिलेगा।

 

आपने उम्मीद है इसलिए साहस कर इतना कह दिया। आशा है आप इसे अन्यथा न लेंगी और मेरे इस दुस्साहस को क्षमा करेंगी।

आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई।

सादर!

Comment by Shyam Narain Verma on June 6, 2013 at 5:55pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by Pragya Srivastava on June 6, 2013 at 5:54pm

अति सुंदर

Comment by vijay nikore on June 6, 2013 at 12:40pm

रचना में भावनाएँ अच्छी लगीं। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by विजय मिश्र on June 6, 2013 at 10:16am
सहज ही सुंदर और मीठी उलाहना के साथ एक अपेक्षा भी .साधुबाद दिव्याजी
Comment by रविकर on June 6, 2013 at 9:00am

बहुत खूब आदरेया-

सीधे साधे प्रश्न से, टहलाते मनमीत |
प्रेम प्रेम सदप्रेम ये, पग पग जाए जीत ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 8:10am

आपके रचनाकर्म में संभावनाएँ हैं, दिव्याजी. शुभेच्छाएँ .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service