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माँ तुम मेरी सहेली हो

माँ तुम अबूझ पहेली हो 
माँ तुम मेरी सहेली हो 

स्नेह की  डोर से बंधी 

ममता की तुम मूरत हो 
हर लेती मेरे दुखो को 
उस ख़ुदा की ही सूरत हो 
मेरा सोता हुआ चेहरा भी 
जाने कैसे पढ़ लेती हो 
कितनी अलाओं बलाओं से 
मुझ को रोज बचाती हो 
निकलती हूँ जब भी घर से 
नजर का टीका  लगाती हो 
भर के नए जज़्बे मुझ मे
हार को जीत बनाती हो,
दे के प्यारा सा एक बोसा
माथे पर तिलक लगाती हो,
नेह भरे स्पर्श से तुम
सारे दुःख हर जाती हो..
माँ तुम अबूझ पहेली हो 
माँ तुम मेरी सहेली हो .....

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by दिव्या on May 16, 2013 at 5:04pm

 आदरणीय जनों, को अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया और समय देंने के लिए ह्रदय से आभार

  

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 12:34am

 बहुत ही सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 12, 2013 at 4:21am

दिव्या बहन, सादर!

चित्र और शब्द चित्र दोनों ही अनमोल है, माँ का तो कोई मोल हो ही नहीं सकता! बधाई!  

Comment by बृजेश नीरज on May 11, 2013 at 1:42pm

बहुत सुन्दर! बधाई स्वीकारें!

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:41pm

नेह भरे स्पर्श से तुम
सारे दुःख हर जाती हो..

माँ तुम अबूझ पहेली हो 

माँ तुम मेरी सहेली हो .....
बधाई हो दिव्या जी इस सुन्दर रचना हेतु।

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 11, 2013 at 8:58am
ममता की तुम मूरत हो 
हर लेती मेरे दुखो को 
उस ख़ुदा की ही सूरत हो .........वाह! बहुत खूब! 
आदरणीया दिव्या जी सादर, बहुत सुन्दर रचना. 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 10, 2013 at 7:15pm

सरल शब्दों में भावपूर्ण प्रस्तुति पर बधाई! प्रवाह पर ध्यान दें पद्य निखर कर सामने आएगा!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 5:12pm

स्नेही दिव्या जी 

सादर 

पूरा द्रश्य आँखों के सामने से गुजर गया 

मां सब कुछ है 

बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on May 10, 2013 at 1:05am
bahut sundar likha hai apne divya g hardik badhai
Comment by coontee mukerji on May 9, 2013 at 10:58pm

दिव्या जी , बहुत सुंदर माँ से अच्छी सहेली और कोई नहीं. भाव संचय अच्छा है .  लिखती रहें ./ सादर / कुंती .

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