विधान : महभुजंगप्रयात सवैया - यगण (।ऽऽ) X 8
नहीं पुत्रियाँ क्या रहीं पुत्र जैसी उठा चिन्तनों में यही प्रश्न भारी
यही सोचते रात्रि बीती हमारी समाधान पाया नहीं बुद्धि हारी
पढ़ा सत्य है पुत्रियाँ हैं नहीं पुत्र जैसी कभी भी न होतीं विकारी
न मारो इन्हें गर्भ में पुत्र से श्रेष्ठ हैं मान लो शक्ति है मात्र नारी
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डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद और आभार राम जी
आदरणीय,बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है अपने हार्दिक बधाई //सादर
क्षमा प्रार्थी हूँ सौरभ जी.......आगे से ध्यान रखूँगा
मेरे जैसे रचनाकार से ऐसी भूल अपराध है है बागी जी.......आपकी महानता है जो उसे मात्र भूल कह कर उपेक्षा कर दी......आभार आपका
आदरणीय आशुतोषजी, सर्वगामी छंद वस्तुतः तगणाश्रित समूह का वृत है. किन्तु आपने शिल्प महाभुजंगप्रयात का दिया था. अतः मैं थोड़ा ऊहपोह में आ गया.
चलिये हम मिलजुल कर सीखते हुए आगे बढ़ते रहेंगे. यही तो इस मंच का मूल उद्येश्य है.
इसी मंच के समूह टैब में एक वर्ग है भारतीय छंद समूह. वहाँ कतिपय छंदों पर प्रविष्टियाँ हैं. अन्य छंदों के विधानों पर भी आलेख आते रहेंगे. उनमें सवैया और उसके कई प्रारूपों पर भी प्रविष्टियाँ हैं. अवसर मिले तो एक नज़र डालियेगा..
http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...
सादर
//मुझसे बड़ा अपराध हो गया कृपया उसे महाभुजंग प्रयात छन्द ही समझे और यदि संभव हो तो मूल पोस्ट में भी सही करवा दें //
अपराध जैसी कोई बात नहीं आदरणीय, इसे भूल कहना पर्याप्त होगा, मूल पोस्ट संशोधित हो गई है ।
आपका कथन सत्य है सौरभ जी सर्वगामी छन्द (७ तगण २ गुरु) का यह शिल्प है मुझसे बड़ा अपराध हो गया कृपया उसे महाभुजंग प्रयात छन्द ही समझे और यदि संभव हो तो मूल पोस्ट में भी सही करवा दें
योगेन्द्र जी धन्यवाद
जहां तक मै जानता हूँ महाभुजंग प्रयात छन्द का शिल्प ७ यगण लघु गुरु होता है सौरभ जी......संभव है मै गलत हूँ एक बार देख कर स्पष्ट कर दूँगा........कभी के साथ भी के प्रयोग का प्रयोग अनुचित है, यह बात मेरे संज्ञान में नहीं है,,,,इसे आपका सद्परामर्श मान कर आगे के लिए ध्यान रखूँगा.......बहुत बहुत आभार
अति सुंदर...
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