For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी शब्द यात्रा----नदी...

---नदी...

नदी के कई नाम हैं...'सरिता, सरी, दरिया..........' अनवरत बहता हुआ स्वच्छ पानी -नदी कहलाता है. पर आजकल के सन्दर्भ में दरिया वो भी साफ़ पानी का थोड़ा मुश्किल है. नदी बहते हुए कभी शांत तो कभी चंचल हो जाती है. अमूमन दरिया शांत बहने वाली धारा लगती है.ये अपने मूल स्थान से जब निकलती है तो प्रायः पतली धारा ही होती है ठीक किसी नवजात शिशु की तरह. जैसे-जैसे नदी आगे बढ़ती है उसके वेग में परिवर्तन होता जाता है जब पर्वत और पहाड़ों से अपनी यात्रा आरंभ करती है तो उसकी रवानी में युवाओं सी चपलता आ जाती है. दरिया का जोश देखते ही बनता है. अचानक लगने लगता है मानों दरिया में तूफान आ गया हो. उछल-उछल कर मानों पहाड़ों की उतुंग चोटी को छूना चाहती हो, उसके साहस से ऐसा लगता है मानों वह पत्थरों को चीर के रख देगी. पहाड़ का दमन छोड़कर जब वह पहाड़ी की तलहटी में आसरा पाती है तो उसकी धारा की प्रबलता अपने चरम पर होती है. उसका वेग इतना प्रचंड होता है कि लगता है मानो वह पृथ्वी का सीना चीर कर उसके अन्तः स्थल में ही प्रवेश कर जाएगी.

पहाड़ी कि तलहटी से आगे की यात्रा में नदी की गति में धीरे-धीरे स्थिरता आने लगती है.यहाँ उसमें चपलता के स्थान पर गंभीरता नजर आने लगती है.नदी मानों व्यस्क हो चली हो और उसे अपने कर्तव्य का भान होने लगा हो.नदी की यात्रा अब मैदानों से होकर गुजरती है, नदी बेहद शांत और कही तो उसकी गति देखकर लगता है मानों वो अपने आसपास की प्रकृति को देखकर ठिठक गई हो और अपनी गति को भूल गई हो. कभी- कभी उसकी गति की आवाज तक नही सुने देती बिलकुल किसी योगी की तरह मौन धारण किये लगती है.

दरिया के दोनों किनारे प्रायः उसके कद से ऊँचे होकर उसको सीमाओं में बांध देते है किसी लक्षम्ण रेखा की तरह, ऐसा लगता है की उसके किनारे उसे अपनी मर्यादा में रहकर बहने को कह रहे हो, आत्मनुशासन का पाठ नदी को इन्ही किनारों से मिलता है जो की हम इन्सान जानते हुए भी नहीं सीखना चाहते.और.............और नदी आत्मानुशासित होकर समरस भाव से एक सन्यासी की भांति होने लगती है............... और धीरे-धीरे मंथर गति से प्रवाहित होते हुए सागर से मिलने के लिए स्वयं-मुग्धा की तरह चल देती है.

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 8:19pm

आदरणीया नदी से सीख लेने की आपने अवश्य सुन्दर सलाह दी है सादर/

Comment by aman kumar on June 2, 2013 at 11:58am

नदी मानों व्यस्क हो चली हो और उसे अपने कर्तव्य का भान होने लगा हो.

नदी तो मानव जीवन का पर्तिदर्श  है बस........

Comment by बृजेश नीरज on June 2, 2013 at 9:05am

बहुत सुन्दर! आपका प्रयास मुझे बहुत अच्छा लगा! कुछ और प्रयासकर यदि इसे सुधारा जाता तो रूप और निखर आता।
मेरी ओर से बधाई स्वीकारें!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 8:50am

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद.

हम सभी व्यक्ति के तौर पर भी नदियों को कई रूपों-अर्थों में जीते हैं.. उत्ताल, तन्वंगी, चंचला, उन्मुक्त, गर्भिणी, वाचाल, मौन, आत्मकेन्द्रित, तापसी, निर्विकार, निर्द्वंद्व.. निर्बंध, अभिमुक्त.. !

आपके प्रस्तुत प्रयास पर बधाई.. .

Comment by coontee mukerji on May 31, 2013 at 12:49pm

वीणा जी , आपने नदी पर बहुत ही सुंदर लेख लिखा है .........हम तो भूल ही गये थे इस मुग्धा नायिका  को . ......./सादर / कुंती .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2013 at 11:32am

बहुत सुंदर बात कही है आपने इस रचना में
सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2013 at 11:19am

"नदी आत्मानुशासित होकर समरस भाव से एक सन्यासी की भांति होने लगती है............... और धीरे-धीरे मंथर गति से प्रवाहित होते हुए सागर से मिलने के लिए स्वयं-मुग्धा की तरह चल देती है".

इंसान किसी के लिए आदर्श हो ना हो, पर नदिया, वृक्ष, पशु पक्षी, यहाँ तक की चीटियाँ भी हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाती है |

सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई वीना सेठी जी 

Comment by Sarita Bhatia on May 31, 2013 at 9:01am

बहुत खूब ,आदरणीय सार्थक रचना ,बधाई ,मुझसे बेहतर कौन जानेगा इस नाम को 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
17 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service