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नाच नचाइ रही सबको अरु ,झूठ फरेब लिए बहु रंगे!

प्रेम क पाठ पढ़ाइ सबै फिर, भाग गयी वह दूसर संगे !!
रूप बिगाड़ फिरे मज़नू बन ,लागत हो जइसे भिखमंगे !
आपन बाल उखाड़ रहे अब ,आवत देखि दया अधनंगे!!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on June 6, 2013 at 9:12am

हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी ///ऐसे ही स्नेह बनाए रखे ////सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 6, 2013 at 9:00am

भाई राम शिरोमणि जी सुन्दर हास्य का पुट लिए यह मत्तगयन्द सवैया सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 3:45pm

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी ///आपको हँसाने में सफल तो लिखना सफल ///सादर


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Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2013 at 3:39pm

हा हा हा हा.. इस मत्तगयंद पर हार्दिक बधाई स्वीकारें भाई.. .

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 1:34pm

हा हा हा नहीं आदरणीया कुंती जी ऐसी कोई समस्या नहीं है !!हार्दिक आभार

Comment by coontee mukerji on May 31, 2013 at 1:27pm

भैया , मजनू का आपबीती है......../ बेचारा मजनू . का करें ......./ कुंती .

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 12:53pm

हार्दिक आभार आदरणीय भाई श्याम  जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 12:53pm

हार्दिक आभार आदरणीय भाई अमन जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2013 at 12:53pm

हार्दिक आभार आदरणीय भाई केवल जी //सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 30, 2013 at 9:30pm

आ0 राम शिरोमणि भाई जी,  हा...हा..हहह..! हास्य-व्यंग्य का सुन्दर पुट। हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

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