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आओ प्रिये!

आओ प्रिये ! आओं
फिर रात ढली
फिर चाँद पुकारे
ज्यों रोशनी को
चिराग तरसे
त्यों तुम्हारी याद में
नैन बरसे।।

आओ प्रिये ! आओ
दिल की हर धड़कन
तुम्हें पुकारे ।।

तुम्हारी छुअन से मिलती
नई चेतना मुझको ।
नेह में डूबी हुई
नई प्रेरणा मुझको ।

वही चिर-परिचित सम्बल,
वही तुम्हारा अहसास,
और सम्वेदना
आज भी
दिल में महफूज है
आओ प्रिये ! आओ
मेरी सम्वेदना
तुम्है पुकारे ।।

शब्द सुगन्ध औ’ स्पर्श की
कल्पना में नहाई रोशनाई
और रात के धुंधलके में
चाँदनी की भाँति
प्रिये ! मुझे तुम्हारी जरूरत है

आओ प्रिये ! आओ
श्वासों का नेह-बन्धन
तुम्हें पुकारे ।।
आओ प्रिये! आओ.......।।
*********************
तरुण कु. सोनी तन्वीर

ईमेल - tarunksoni.tanveer@gmail.com

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 3, 2013 at 10:51am
आदरणीय..तरुण जी, बहुत ही सुंदर रचना, पंक्तियों में प्रेम की अनुभूति " तुम्हारी छुअन से मिलती नई चेतना मुझको, नेह में डूबी हुई नई प्रेरणा मुझको.....मेरी संवेदना तुम्हे पुकारे " तरुण जी.. बहुत खूब बहुत सुंदर
Comment by TARUN KUMAR SONI "TANVEER" on June 3, 2013 at 10:14am
thank you very much sir ji

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 11:29pm

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाई.. .

Comment by TARUN KUMAR SONI "TANVEER" on May 29, 2013 at 5:54pm

थैंक्स प्रियंका जी 

Comment by Priyanka singh on May 29, 2013 at 12:31am

सुन्दर रचना ....बधाई सर 

Comment by TARUN KUMAR SONI "TANVEER" on May 28, 2013 at 11:42pm

शुक्रिया अभिनव जी और कुन्ती जी, अपना आशीर्वाद बनाये रखे. 

Comment by coontee mukerji on May 28, 2013 at 2:18pm

बहुत सुंदर रूमानी कविता ..रेगिस्तान में ठंडी छाँव की तरह.

सादर

कुंती.

Comment by Abhinav Arun on May 27, 2013 at 8:53pm

श्री तरुण जी अच्छी रचना . भावों में ताजगी और अदायगी बेहतर ...

वही चिर-परिचित सम्बल,
वही तुम्हारा अहसास,
और सम्वेदना
आज भी
दिल में महफूज है
आओ प्रिये ! आओ
मेरी सम्वेदना
तुम्है पुकारे ।।

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