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करें इश्क और रखें फिर भी दिल पे काबू ,क्या कहें

"करें इश्क और रखें फिर भी दिल पे काबू ,क्या कहें
बतलाएँ क्या कैसा रूप है तेरा कैसी है तू ,क्या कहें

डूबे कजियारी आँखों में तेरे तो जी ली ज़िन्दगी सारी
अज़ब है ये आशिकी भी ,पल पल अमल और बेकरारी

मर मिटने की तुझपे कैसी है ये जुस्तजू ,क्या कहें
करें इश्क और रखें फिर भी दिल पे काबू ,क्या कहें

सोचे और कहता रहे जो भी हमें जमाना कहना चाहे
जानकर भी जलता है क्यूँ ये भला परवाना क्या जाने

जब हुए ही नहीं बेखुद तो फिर कैसा जादू ,क्या कहें
करें इश्क और रखें फिर भी दिल पे काबू ,क्या कहें''

~~~ चिराग़

MAY 18,2013

 [पूर्णतः मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment by Kedia Chhirag on May 24, 2013 at 9:42am

आदरणीय अशोक जी ,दिल से बहुत बहुत धन्यवाद...

Comment by Kedia Chhirag on May 24, 2013 at 9:41am

बंधुवर अरुण जी ,ओ बी ओ तो हम जैसे नए नए शिक्षार्थियों के लिए स्वर्ग है ...जहाँ से हम लोग बहुत ही उम्दा मार्गदर्शन प्राप्त कर पाते हैं तथा सभी गुरुजनों की छत्रछाया में सीखने का प्रयास कर सकते हैं ...आपने उत्साहवर्धन किया ..बहुत बहुत आभार आपका ....

Comment by Kedia Chhirag on May 24, 2013 at 9:37am

आदरणीय शालिनी जी ,बहुत बहुत आभारी हूँ आपका ......

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 23, 2013 at 11:43pm

सुन्दर रचना आदरणीय चिराग जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 21, 2013 at 3:55pm

प्रयास अच्छा है इस हेतु बधाई स्वीकारें प्रयासरत रहे सीखने हेतु अग्रसर रहें सब कुछ संभव है यदि ओ बी ओ पर सक्रिय रहेंगे. सादर

Comment by shalini kaushik on May 21, 2013 at 1:05am

 बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति 

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