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तरही ग़ज़ल--आपसे मिलकर ये जाना दोस्ती क्य चीज़ है।

आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।

ख़ून  बेमक़सद  बहाये, आदमी क्या चीज़ है,

आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।

कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,

रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।

अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,

सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़ है।

खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,

ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या  चीज़ है।

खूबसूरत - खूबसूरत  सारी  दुनिया है मगर, 

मैं ते हैंराँ हूँ, मुहब्बत आपकी क्या चीज़ है। 

किस तरह पैदा किया माँ ने, समझना है यही,

तेल सरसों का निकलता है, फली क्या चीज़ है।

शब्दों का इक बाण,होठों की हंसी को छानता,

गुस्सा भी क्या चीज़ है,नाराजग़ी क्या चीज़ है।

सारी दुनियां को देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान"

शांत मन से सोचकर कहना, खुदी क्या चीज़ है।

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Comment by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 10:30pm

विजय मिश्र जी, स्वागत व धन्यवाद.......आपकी दाद पाकर मन हर्षित हो रहा है।

आदमी पूरी तरह बेतरतीब है  आज के भागदौड के समय में...........बाकी मेरा नाम  सूजन नहीं है...सुजान है

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 10:24pm
श्याम नारायँ वर्मा जी, आपने पसंद किया........इसके लिये दिल कह रहा है कि आपका धन्यवाद करता चलूं
Comment by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 10:24pm
श्याम नारायँ वर्मा जी, आपने पसंद किया........इसके लिये दिल कह रहा है कि आपका धन्यवाद करता चलूं
Comment by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 10:22pm
PARDEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA........JI..आपने अपने लिये बहुत खूब कहा...लेकिन ये तो सभी के लिये ही है...........सब पर ये दिन आने ही होते हैं।
आपकी पसंदगी पर धन्यवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 14, 2013 at 6:33pm

भाई सूबे सिंह सुजान जी,  इस ग़ज़ल पर कुछ कहूँ, उससे पहले एक जिज्ञासा बन रही है कि आपने इस ग़ज़ल के शीर्षक मे तरही शब्द क्यो लगाया है ?

 

Comment by विजय मिश्र on May 14, 2013 at 6:10pm
" ख़ून बेमक़सद बहाये, आदमी क्या चीज़ है,
आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है। " ---- हल्के लफ्जों में इतनी संजीदा बात कही आपने , रुक कर दो बार पढ़ा , तब संतोष हुआ .सही में आजका आदमी बेतरतीब है और जिंदगी की अहमीयत से महरूम . सूजन भाई , सरस रचना .
Comment by Shyam Narain Verma on May 14, 2013 at 2:56pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 14, 2013 at 1:29pm

खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,

ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या  चीज़ है।

ये मेरे लिए ..बहुत खूब 

सादर बधाई 

आदरणीय सुजान जी 

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