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क़ृष्ण तुम बंसी बजाना

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना

 

 

उन्मुक्त हो मुक्त गगन में,

छेड़ू मैं कोई तान प्यारी,

मधुर रस भरी प्रेम की,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

गाएँगे सब पशु-पक्षी ,

आ जायेंगे तुम्हारे साथी भी,

बहेगी निःस्वार्थ प्रेम की गंगा,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

भक्ति रस घुलेगा हवाओं में,

पहुँचेगा वृंदावन की गलियाँ,

नाचेगी सब गोपियाँ वहाँ ,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

जग जायेंगे योगी ध्यान से,

करेंगे भक्ति का मद पान ,

मदहोश करके सबको,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

प्रेम फैले इस जहाँ में,

टूट जायें दीवारें  सब,

झूमें सब तुम्हारे प्रेम में,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

एक दूसरे से प्रेम हो,

लगाव हो, जुड़ाव हो,

मिलकर गायें भक्ति का गीत,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

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Comment by akhilesh mishra on May 13, 2013 at 10:49am

कूनती मुकेरजी मैडम कविता पसंद आई ,यह मेरा सौभाग्य है ।धन्यवाद ।

Comment by akhilesh mishra on May 13, 2013 at 10:48am

सिंह जी सुभेच्छा के लिए धन्यवाद ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 12, 2013 at 6:57am

एक दूसरे से प्रेम हो,

लगाव हो, जुड़ाव हो,

मिलकर गायें भक्ति का गीत,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

बस इसी की जरूरत है!

कृष्ण बंशी बजायेंगे और हम सभी नाचेंगे गायेंगे!

Comment by coontee mukerji on May 11, 2013 at 6:27pm

गाएँगे सब पशु-पक्षी ,

आ जायेंगे तुम्हारे साथी भी,

बहेगी निःस्वार्थ प्रेम की गंगा,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।.................बहुत सुंदर / 

Comment by Shyam Narain Verma on May 11, 2013 at 6:12pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by Kavita Verma on May 11, 2013 at 1:37pm

sundar bhavabhivyakti...badhai ..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 11, 2013 at 12:17pm

  सुन्दर भाव प्रस्तुति।  बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by shalini kaushik on May 11, 2013 at 12:47am

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति . .बधाई .

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