For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूरज

 

जब छाए मन में निराशा,

तब सोचो उस सूरज को,

जो रोज डूबता है पर,

उगता फिर नई सुबह है ।

 

नई ऊर्जा ,नए उत्साह से,

बाँटता है खुशी अपनी,

मिट जाए दुनिया का अंधकार,

प्रकाश इसीलिये फैलाता है ।

 

तेज आभा ,प्रसन्न मुख ,

मजबूती की शिक्षा देते हैं,

खड़े हो जाओ,डटकर के,

कर्म का पाठ पढ़ाता है ।

 

न हारो और न रुको कभी,

संघर्ष करो तुम लगातार ,

टिक पाये नहीं सामने कोई,

तेज ऐसा पाने को कहता है ।

 

बाँटो सिर्फ खुशी अपनी,

कष्ट छिपाने को कहता है,

दुःख सुख हैं सबके जीवन में,

स्वीकार करने को कहता है ।

 

सूरज का अंश हो तुम,

तेज अपना प्रकट करो,

हल्के हवा के झोंको से,

पत्ते की भाँति मत हिला करो ।

 

(मौलिक  और  अप्रकाशित)

Views: 441

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by akhilesh mishra on February 14, 2014 at 6:40pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,भंडारी जी,मुखर्जी मैडम,पाठक मैडम,श्याम नारायण वर्मा जी,प्राची सिंह मैडम , आप सभी का बहुत-बहुत आभार |प्राची सिंह मैडम, आपकी सलाह भविष्य के लेखन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 13, 2014 at 6:02pm

आ० अखिलेश जी 

एक अरसे बाद आपकी प्रस्तुति मंच पर दीख रही है...

निराशा को दूर हटा हौसला रख आगे बढने का सन्देश देती आपकी रचना का कथ्य सुन्दर है प्रभावी है ..जिसके लिए आपक हृदयतल से बधाई ..

पर शिल्प !!!

शिल्प का क्या किया भाई जी? इस प्रस्तुति में गद्यात्मकता बहुत हावी लगी मुझे और तुकांतता पर भी बहुत ध्यान देने की ज़रुरत है.. सजग पाठन और सतत लेखन अभ्यास बहुत कुछ स्वतः ही साधता चलता है.

शुभेच्छाएं 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2014 at 7:33pm

सुन्दर और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 9:01pm

आदरणीय , सुन्दर सदेश देती आपकी रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by coontee mukerji on February 10, 2014 at 3:27pm

 

सूरज का अंश हो तुम,

तेज अपना प्रकट करो,

हल्के हवा के झोंको से,

पत्ते की भाँति मत हिला करो ।.....बहुत ही सुंदर विचार है. शुभकामनाएँ.

Comment by Meena Pathak on February 10, 2014 at 2:54pm

सुन्दर रचना .. बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on February 10, 2014 at 1:24pm
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
21 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service