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इश्क के इम्तिहान से सनम यूँ  घबरा गया,
छोड़ कर सागर मे कश्ती खुद किनारे आ गया ....


डूबने की चाहत उसे थी इश्क के दरियाओं मे ,
देखकर रुख भँवर का फिर कैसे खौफ खा गया ...


दोस्ती ओर प्यार मे कुछ इस तरह से जंग हुई,
प्यार कुछ पा न सका ओर दोस्ती को मिटा गया .....


रब ही जाने किस हाल मे रहता है मुझसे रूठकर ,
इस तरह से जाना उसका मुझको कितना रुला गया

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 24, 2013 at 12:11pm
आदरणीया रोशनी जी....बहुत ही उम्दा पंक्तिया लिखी है, आपने अपनी कविता में
Comment by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:03pm

सुन्दर प्रस्तुति रोशनी जी  !सादर बधाई 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:56pm

ब्रिजेश नीरज जी मार्गदर्शन हेतु आभार 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:55pm

सावित्री जी तारीफ के लिए शुक्रिया 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:55pm

वाहिद जी प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:55pm

धन्यवाद चाचा जी ..

Comment by बृजेश नीरज on May 11, 2013 at 1:35pm

आपने जिस खूबसूरती से रचना की शुरूआत की वह काबिले तारीफ है लेकिन कदम आगे कुछ डगमगा गए। लय को बनाए रखें।
रचना खूबसूरत बनी है। कथ्य बहुत अच्छा है। ढेरों बधाई आपको।
सादर!

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:34pm

रब ही जाने किस हाल मे रहता है मुझसे रूठकर ,
इस तरह से जाना उसका मुझको कितना रुला गया
सुन्दर भाव ......सुन्दर प्रस्तुति !

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 10, 2013 at 7:16pm

सुन्दर प्रस्तुति! बधाई रौशनी जी!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 6:06pm

वाह रोशनी जी 

सस्नेह 

आनंद आ गया 

सादर बधाई 

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