For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क के इम्तिहान से सनम यूँ  घबरा गया,
छोड़ कर सागर मे कश्ती खुद किनारे आ गया ....


डूबने की चाहत उसे थी इश्क के दरियाओं मे ,
देखकर रुख भँवर का फिर कैसे खौफ खा गया ...


दोस्ती ओर प्यार मे कुछ इस तरह से जंग हुई,
प्यार कुछ पा न सका ओर दोस्ती को मिटा गया .....


रब ही जाने किस हाल मे रहता है मुझसे रूठकर ,
इस तरह से जाना उसका मुझको कितना रुला गया

Views: 727

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 24, 2013 at 12:11pm
आदरणीया रोशनी जी....बहुत ही उम्दा पंक्तिया लिखी है, आपने अपनी कविता में
Comment by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:03pm

सुन्दर प्रस्तुति रोशनी जी  !सादर बधाई 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:56pm

ब्रिजेश नीरज जी मार्गदर्शन हेतु आभार 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:55pm

सावित्री जी तारीफ के लिए शुक्रिया 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:55pm

वाहिद जी प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:55pm

धन्यवाद चाचा जी ..

Comment by बृजेश नीरज on May 11, 2013 at 1:35pm

आपने जिस खूबसूरती से रचना की शुरूआत की वह काबिले तारीफ है लेकिन कदम आगे कुछ डगमगा गए। लय को बनाए रखें।
रचना खूबसूरत बनी है। कथ्य बहुत अच्छा है। ढेरों बधाई आपको।
सादर!

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:34pm

रब ही जाने किस हाल मे रहता है मुझसे रूठकर ,
इस तरह से जाना उसका मुझको कितना रुला गया
सुन्दर भाव ......सुन्दर प्रस्तुति !

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 10, 2013 at 7:16pm

सुन्दर प्रस्तुति! बधाई रौशनी जी!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 6:06pm

वाह रोशनी जी 

सस्नेह 

आनंद आ गया 

सादर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
12 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service