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जीवन में जिन्दगी का माँ एहसास हो तुम .........

तपती धुप धूप में
छाँव हो तुम
मेरे लिए
बहुत खास हो तुम
तुम्हारे एहसास भर से
दूर हो जाती है हैं मेरी
परेशानियाँ सारी
जीवन में जिन्दगी का
माँ एहसास हो तुम .........
दर्द में सुकून बन जाती हो
भूख न हो मुझे तब भी
खाना खिलाती हो .....
मैं बताऊ बताऊँबताउं बताऊँ तुम्हे परेशानी अपनी
बिन बताये ही माँ तुम मेरी
हर बात समझ जाती हो ...

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Comment

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Comment by Sonam Saini on May 10, 2013 at 3:07pm

आदरणीय सर जी नमस्कार
जी अब समझ आ गया .... पुनः आभार व धन्यवाद .

Comment by Sonam Saini on May 10, 2013 at 3:06pm

आदरणीय सीमा मैम नमस्कार व धन्यवाद

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 9, 2013 at 2:49pm

//हर बात जान जाती  हो//, 

//माँ के आलावा ?//

//कोई नहीं//

//माँ तुझे प्रणाम//

आदरणीया सोनम जी , अभी न समझ आये तो फिर विस्तार देना पड़ेगा. 

सस्नेह 

Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 2:24pm

माँ को समर्पित आपकी इस खूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत बधाई सोनम जी 

Comment by Sonam Saini on May 9, 2013 at 1:37pm

धन्यवाद अरुण जी

Comment by Sonam Saini on May 9, 2013 at 1:36pm

आदरणीय राजेश मैम नमस्कार
प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद मैम

Comment by Sonam Saini on May 9, 2013 at 1:35pm

आदरणीय कुशवाहा सर जी नमस्कार
माफ़ी चाहूंगी लेकिन आपकी प्रतिक्रिया का अर्थ मैं समझ नही पाई ...

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 9, 2013 at 1:12pm

सोनम जी माँ होती ही कुछ ऐसी हैं, बिना कुछ कहे, बिना कुछ सुने सारी बातें समझ जाती हैं. माँ तो आखिर माँ है न. सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई सोनम जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 8, 2013 at 6:35pm

हर बात जान जाती  हो, 

मान के आलावा ?

कोई नहीं माँ तुझे प्रणाम 

बधाई,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 8, 2013 at 11:01am

माँ के चरणों में ये शब्द पुष्प अच्छे लगे हार्दिक बधाई |

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