For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मई महीने के दूसरे रविवार को 

"मातृ दिवस"

नाया जाता है

बस एक दिन.....
माँ का सम्मान किया जाता है
क्या माँ..........

वो इसी एक दिन....... 

के लिये होती है

बाकी के....

तीन सौ चौंसठ दिन

वो शायद 

चाकरी करती है....

अपने बच्चों की...

अपने पति की..

िःस्वार्थ भावना लिये

और देर रात...

दुबक जाती है...

घर के किस कोने में

और संचय करती है

बल...
आने वाले कल के लिये 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by aman kumar on June 14, 2013 at 11:39am

स्त्री विमर्श पर एक सार्थक प्रस्तुति !

Comment by Vindu Babu on May 27, 2013 at 7:45am
बहुत ही मार्मिक भावाभ्यक्ति की है बहन आपने।
माँ को अगर कोई शब्द परिभाषित कर सकता है तो वह केवल 'माँ..'है।
सादर
Comment by नादिर ख़ान on May 9, 2013 at 12:54pm

और देर रात...

दुबक जाती है...

घर के किस कोने में

और संचय करती है

बल...
आने वाले कल के लिये ...

माँ तो अनमोल रत्न है ।

 

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on May 8, 2013 at 10:48am

सुन्दर रचना

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 7, 2013 at 8:08pm

आदरणीया यशोदा जी,   सुन्दर और सटीक बात!  मां वह होती है जो अपने लिए कुछ नही चाहती और वह अपना सर्वस्व अपने बच्चो पर निछावर कर देती है। और... रात के अंधेरों की तरह निढाल किसी कोने में....कल के उज्ज्वल भविष्य के लिए ही बल संचयन हेतु सपने देखती है। मां को श्रध्दा सुमन!  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Usha Taneja on May 7, 2013 at 6:48pm

आदरणीय यशोदा दिग्विजय अग्रवाल जी, बहुत बढ़िया सवाल उठाया है आपने. पर इसका एक दूसरा पहलू भी है कि इस दिन हम एक दूसरे की माँ से भी मिल लेते हैं. वरना हमेशा तो अपनी ही पड़ी रहती है.

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on May 6, 2013 at 5:28pm

मां के सम्मोहक व्यक्तित्व से जुडे अनगिनत पहलुओं में से एक को छूती सराहनीय रचना.........!!!!

Comment by Shyam Narain Verma on May 6, 2013 at 4:10pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by यशोदा दिग्विजय अग्रवाल on May 6, 2013 at 3:13pm

आप सभी स्नेही मित्रों का हृदय से आभार

Comment by बसंत नेमा on May 6, 2013 at 2:53pm

माँ के लिये एक दिन नही एक साल नही एक जन्म नही बल्कि जन्म दर जन्म माँ का गुणगान करो तब भी कम है ....... बधाई हो 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service