For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमने जो भी बात कही थी

सबको माना तेरे बाद

हो गई अपनी पीर पराई

हँस के जाना, तेरे बाद

बोझिल राते खुल के बोलीं

दिन बतियाया तेरे बाद

तेरे रहते था मैं बूढ़ा

खिली जवानी तेरे बाद

तुझे देख जो बादल गरजे

जमकर बरसे तेरे बाद

हो गई सारी दरिया खारी

रो-रो जाना, तेरे बाद

तेरे रहते दर-दर भटका

मंजिल पाई तेरे बाद

हाथों की वो चंद लकीरें

बनीं मुकद्दर तेरे बाद

यह भी तेरी रही नवाजिश

मंदिर पहुंचा तेरे बाद

बुत पूजे औ मन्‍नत मांगी

हो गया काफि़र तेरे बाद

यूं तो अक्‍सर रहा अकेला

तन्‍हा रह गया तेरे बाद

मुझको मैंनें बेदम पाया

हरपल जाना तेरे बाद

तेरे रहते दर्पण थे जो

बन गए शीशे तेरे बाद

मेरा मैं मुझसे घबराया

पल-पल जाना तेरे बाद

तुमने जितने दीप जलाए

बन गए तारे तेरे बाद

तेरी मेरी बातें करती

मिट्टी, पानी, तेरे बाद

अब तो सारे दर्द मरे हैं

कोयल भी चुप तेरे बाद

सारे भय सारी आशंका

खुद ही भागी तेरे बाद

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on May 13, 2013 at 3:59pm

आप सबका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ जी, गलती माफ करें, मैं पशोपेश में पड़ गया इसी कारण दरिया के साथ स्‍त्रीलिंग क्रिया रख दी, सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 1:02pm

विरह में उपजे भावों की सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय राजेश जी सादर बधाई स्वीकारें इस भावपूर्ण रचना पर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 4, 2013 at 9:35pm

राजेश भाई वाह आनंद आ गया सुन्दरता से परिपूर्ण प्रस्तुति, कई बंध ह्रदय स्पर्श कर गए. आपकी रचना सदैव मुझे प्रभावित करती है मेरी और से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Priyanka singh on May 4, 2013 at 7:42pm

बहुत खुबसुरत ''तेरे बाद''..........बधाई आपको....

Comment by बृजेश नीरज on May 4, 2013 at 6:56pm

आदरणीय बहुत ही सुन्दर! बधाई!

Comment by coontee mukerji on May 3, 2013 at 9:13pm

राजेश जी  , आपकी झोली  से एक और  सुंदर मोती की लड़ी गिरी .  हमने संजो लिया / सादर /  कुंती .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 3, 2013 at 10:14am

यूं तो अक्‍सर रहा अकेला,तन्‍हा रह गया तेरे बाद

मुझको मैंनें बेदम पाया,  हरपल जाना तेरे बाद

तेरे रहते दर्पण थे जो,बन गए शीशे तेरे बाद

मेरा मैं मुझसे घबराया,पल-पल जाना तेरे बाद

तुमने जितने दीप जलाए,बन गए तारे तेरे बाद- वाह ! वाह! सुन्दर पंक्तिया राजेश जी बहुत बहुत बधाई 

 

Comment by विजय मिश्र on May 3, 2013 at 10:02am
" दुनियाँ जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है , मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना " फिराकसाहब की यह लाइन कविता के आशय को मुकम्मल बयाँ करती है .
Comment by manoj shukla on May 3, 2013 at 9:27am
बहुत सुन्दर रचना बधाई स्वीकार करें आदर्णीय

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 7:08am

विरहजन्य उद्विग्नता को सार्थक शब्द देना भला लगा.

कई बंद प्रभावी बन पड़े हैं. आपकी रचनाओं की एक दशा होती है, उसीकी प्रच्छाया में जीती मुलायम शब्दों से अभिव्यक्त हुई प्रस्तुत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय राजेश कुमार जी.

एक बात :

दरिया स्त्रीलिंग क्रियाएँ नहीं लेता.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service