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महक उठेगी रात की रानी


महक उठेगी रात की रानी

तेरी वेणी में सज कर ही.

चंदनिया शीतल हो गी पर

तेरी काया से लग कर ही .





सुमन सुशोभित हों उप वन में

तेरे आँचल के छूते ही

मानस तल पर विविध छटाएं

बिखरें तुम को छू पल भर ही .



मन मयूर करे नृत्य सुहाना

पुलकित होता हर्षाता है

जब छाते हैं कुंतल

बस तेरे मुख के नभ पर ही



मन की सीमा से आगे भी

देखो कई असीम गगन हैं

सोच विहग है आतुर पल पल

मेरा मन सुख के पथ पर ही .

दीप ज़ीरवी 9815524600

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Comment by DEEP ZIRVI on November 25, 2010 at 7:43am
DHNYAVAAD

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2010 at 4:23pm
मन की सीमा से आगे भी
देखो कई असीम गगन हैं,

बहुत बढ़िया ज़ीरवी साहब, आपको पढ़ना हमेशा सुखद रहा है | बहुत खूब , सुंदर और बेहतरीन काव्य कृति पर बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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