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               अभिलाषा

मेरी अब  यही एक अभिलाषा है
कि दूर क्षितिज में जाने से पहले
इन बेनाम-लावारिस कविताओं का
नामकरण करता चलूँ ।
 
सुनो, तुम्हें न्योता भेजूँ तो
आओगी न ?
 
तुम्हारे आने की प्रत्याशा में मैं
फूला नहीं समाऊँगा, और
एक बहुत सुन्दर मंडप सजाऊँगा,
वैसा ही जैसे बचपन में कभी
तुमने सजाया था,
खेल-खेल में जब तुमने
नाम मेरा अपनाया था ।
 
लेकिन अब इतने वर्ष उपरान्त
मेरे पास हवन के लिए सामग्री
और कमंडल में पानी
बहुत कम बाकी है ।
 
आते-आते तुम उसी नदी से प्रिय
कुछ पानी और ले आना
वहीं जिस नदी पर तुमने कभी
सूर्य-नमस्कार के बाद
दूधिया किरणों के सम्मुख
मेरे लिए मनोती माँगी थी
और मैनें झट तुम्हारे ओंठों पर
अपना हाथ रख दिया था ।
 
और हाँ, सामग्री के लिए
ले आना कुछ सूखी फलियाँ
नदी के पास उसी खेत से तुम
जिसकी ऊँची-लम्बी फ़सल में हम
झाड़ियों में छिप जाते थे
और जहाँ पर मैंने
तुम्हारे पैर में चुभा काँटा, स्नेह से
एक और काँटे से निकाला था,
और तुम देर तक मेरे कंधे का
सहारा लिए खड़ी रही थी।
                ---------
                                            -- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Dr.Prachi Singh on April 11, 2013 at 5:07pm

सुकोमल भाव लिए प्रवाहमय सुन्दर प्रस्तुति...  स्वप्नों की ओर 

हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोर जी 

Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2013 at 3:40pm
नदी के पास उसी खेत से तुम
जिसकी ऊँची-लम्बी फ़सल में हम
झाड़ियों में छिप जाते थे
और जहाँ पर मैंने
तुम्हारे पैर में चुभा काँटा, स्नेह से
एक और काँटे से निकाला था,
और तुम देर तक मेरे कंधे का
सहारा लिए खड़ी रही थी।

आदरणीय विजय सर दिल से निकले सुन्दर भाव ///////वाह वाह !!हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on April 11, 2013 at 1:55pm

बहुत भावुक निमंत्रण और आहवाहन! अप्रतिम! दिल में दूर तक गहरे पैठती हुई। पहली पंक्ति से अंतिम अक्षर तक प्रवाह निरंतर बना रहा और डूबते चले गए। काश यह प्रवाह यूं ही चलता रहता।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय!
सादर!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 12:59pm

आदरणीय विजय सर जी सादर प्रणाम
बहुत ही भावपूर्ण रचना
दिल मे बहुत गहरे उतरी है
इक इक शब्द मे आपने दिल उतार दिया है
यकीन मानिए आप अपनी प्रिय को ये रचना मत पढ़ाईएगा
उनके आँख से आँसू न रुकेंगे

सादर बधाई स्वीकारें
ऐसे निश्च्छल निमंत्रण के आगे नतमस्तक हूँ

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