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भावना अर्पण करूँ....नवगीत// डॉ० प्राची

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

गूँज लें सारी फिजाएँ

युगल मन मल्हार गाएँ

चंद्रिकामय बन चकोरी

प्रेम उद्घोषण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

मन-स्पंदन कर दूँ शब्दित

तोड़ कर हर बंध शापित

नेह पूरित निर्झरित उर

गान से तर्पण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

भाव झंकृत हृदय धड़कें

सुरमई सब स्वप्न थिरकें

सहज संवेदना स्वीकृत

सर्वदा हो प्रण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

उड़ चलूँ विस्तार लेकर

तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 10:49am

प्रिय राम शिरोमणि जी
रचना आपको पसन्द आई  आपकी शुभकामनाएं  मिलीं, मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ।

Comment by coontee mukerji on April 1, 2013 at 12:55am

बहुत ही गहरे प्रेम की अभिव्तक्ति है प्राची जी , अति सुंदर .

Comment by vijayashree on April 1, 2013 at 12:11am

उड़ चलूँ विस्तार लेकर

तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ......

 

लाजवाब , उत्कृष्ट अभिव्यक्ति

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 31, 2013 at 10:51pm

डॉ. प्राची जी आप बेहतरीन कविताएँ रचती हैं । :-)
"भावना अपर्ण करूँ" क्या उत्कृष्ट गीत लिख दिया । 2-3 दिन बार पढ़ा तब रूह तक उतरा ।

उड़ चलूँ विस्तार लेकर

तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

हर बंध लाजवाब है । सुन्दर गीत के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 9:11pm

उड़ चलूँ विस्तार लेकर

तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 प्रिय प्राची जी मन  के उत्कृष्ट भावों को बहुत सुंदर शब्द दिए हैं बहुत सुंदर पंक्तियां सुंदर नव गीत हेतु हार्दिक बधाई  |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 31, 2013 at 2:53pm

आदरणीया, प्राची सिंह, मैमजी, सबसे पहले आपको सपरिवार प्रेम एवं सद्भावना का प्रतीक होली के पावन त्योहार पर हार्दिक शुभकामनाएं।

मन.स्पंदन कर दूँ शब्दित
तोड़ कर हर बंध शापित
नेह पूरित निर्झरित उर
गान से तर्पण करूँ...

प्रीत शब्दातीत को शुचि
भावना अर्पण करूँ............‘ नारी मन की कुण्ठा का सजीव चित्रण एक एक शब्द मन को झंकृत करता हुआ। अतिसुन्दर गीत। कृपया मुझ अकिंचन की बधाई स्वीकार करें, सादर।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 1:58pm

गूँज लें सारी फिजाएँ,युगल मन मल्हार गाएँ

चंद्रिकामय बन चकोरी, प्रेम उद्घोषण करूँ...     

उड़ चलूँ विस्तार लेकर,तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को,ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि,भावना अर्पण करूँ...--   प्रेम में समर्पित भाव हो तो सच्चा प्रेम होता है,स्वत स्फूर्त उद्घोषित                                           होता है , उसमे संवेदना होती है, मन से गायन होता है, प्रेम प्रीत तब अश्रुओ से बरसता है | सुन्दर शब्दों में नवगीत 

में अभिव्यक्त किये भावो के लिए हार्दिक बधाई डॉ प्राची जी 

Comment by ram shiromani pathak on March 31, 2013 at 12:55pm

भाव झंकृत हृदय धड़कें

सुरमई सब स्वप्न थिरकें

सहज संवेदना स्वीकृत

सर्वदा हो प्रण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि

भावना अर्पण करूँ...

आदरणीया प्राची मैम मेरे पास तो शब्द ही नहीं है की ,क्या कमेंट करूँ ...
नो कमेंट बस वाह वाह !प्रणाम सहित हार्दिक बधाई !

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