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तुम्हारे उपवन के उपेक्षित कोने में

एक नन्हा सा घरौंदा है,

जहाँ मैं और मेरी तन्हाई

साथ-साथ रहते हैं –

क्या तुमने कभी देखा है ?

 

यहाँ तुम्हारे आंचल की सरसराहट

सुनाई नहीं देती,

तुम्हारी खुशी की खिलखिलाहट भी

मंद पड़ जाती है –

पर,

तुम्हारे गजरे का सुबास

स्वयम यहाँ आता है,

हर सुबह एक कोयल

कोई नया राग गाती है ;

हमने ओस की बूंदों को

पलकों का सेज दिया है –

क्या तुमने कभी जाना है ?

 

जब तुम्हारे गीतों को

भँवरे गुनगुनाते हैं,

जब पराग से मधुरस वे

चुपके से ले जाते हैं,

हमारे घरौंदे में भी

आहट सी होती है;

पुलकित एक भाव जब

मुझमें समा जाता है,

दिल की हर धड़कन

बस यही राग गाती है –

कोई कहीं आता है

कोई कहीं आती है –

क्या तुमने कुछ समझा !!

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Comment

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Comment by sharadindu mukerji on March 19, 2013 at 3:47pm

प्रियवर पाठकजी और सारस्वत जी, आप लोगों ने मेरा हौसला बढ़ाया है. मैं आभारी हूँ.

Comment by Yogi Saraswat on March 19, 2013 at 2:43pm

तुम्हारे गजरे का सुबास

स्वयम यहाँ आता है,

हर सुबह एक कोयल

कोई नया राग गाती है ;

हमने ओस की बूंदों को

पलकों का सेज दिया है –

क्या तुमने कभी जाना है ?

bahut sundar bhaav

Comment by ram shiromani pathak on March 17, 2013 at 12:40pm

जब तुम्हारे गीतों को

भँवरे गुनगुनाते हैं,

जब पराग से मधुरस वे

चुपके से ले जाते हैं,

हमारे घरौंदे में भी

आहट सी होती है;.....................sundar ati sundar  adarneey sharadindu mukerji ji....

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