एक मुक्कमल इन्सां .......]
ता उम्र टुकड़ों मे बंटता रहा
क्या मैं पूरा हूँ पूछ पूछ
आईने से लड़ता रहा
एक दिन वो भी सच बोल गया
गिर कर टुकड़ों मे बिखर गया
शांत झील मे पत्थर उछाल
खुद को देखता हूँ मैं
खुदा से नाराज़ नही
खुद को हिस्सों मे बाँट
उसकी मंशा पूरी करता हूँ मैं
मुझमे एक पिता, पति, दोस्त और एक बेटा है
उन सब पर नज़र रख
खुदा का शुक्रिया अदा करता हूँ मैं
सब अपने अपने काम को
ठीक से अंजाम देते हैं, और
तन्हा मौज करता हूँ मैं
जिस दिन उसका बुलावा आएगा
एक मुक्कमल इन्सां
इस दुनिया से जाएगा.....
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
/क्या मैं पूरा हूँ पूछ पूछ
आईने से लड़ता रहा
एक दिन वो भी सच बोल गया
गिर कर टुकड़ों मे बिखर गया/
स्पष्ट नहीं हुआ कि आईना का प्रतिउत्तर सकरात्मक था या नकरात्मक ।
जिस दिन उसका बुलावा आएगा
एक मुक्कमल इन्सां
इस दुनिया से जाएगा.....रचना और मेहनत चाहती है । प्रयास हेतु आभार ।
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