बस यूँ ही.....काश ये हलके होते.....
बचपन के सपने
खुली आँखों के सपने
खुला आकाश
आज़ाद पंछी
बहुत से उड़ गए
कुछ सफ़र पूरा कर
वापस पलकों पर आ गए
और अब...
बंद आँखों में नींद कंहा
नींद कभी आई तो
सपने कंहा
कभी आये तो
उड़े कंहा,आकाश कंहा
जरूरतों के पिंजरे में कैद
कभी निकले तो
ज़रा फडफडाये
पर मजबूरियों के पत्थर
वक्त के हाथों में हमेशा दिखे
और निशाना भी पक्का
उड़ने से पहले ही लगे
पंछी फिर फडफडाये,गिरे
आज भी उन पत्थरों के नीचे दबे हैं
काश , ये पत्थर जरा हलके होते तो
शायद ,छटपटाते ,हिलते हिलाते
नीचे से निकल आते अधमरे से
मगर सपने तो पंछी थे
ये पत्थर तो पत्थर ही हैं
काश ये जरा हलके होते ..........पवन अम्बा ...
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
Saurabh Pandey ji...guru jano se mila ek ek comnt mere liye prasaad ki tarah hi hota hai......mai private service mei hun aur mujhe samaye bahut km mil pata hai........jitna bhi milta hai pura prayaas hota hai ki aap sb se kuch seekh saku.....dil se aabhaar aap sb kaa aur is group kaa.....
निर्दोष सपनों पर सांसारिक रौद्र विसंगति का वातावरण बनाता है. उनके संदर्भ में कुछ कहना अच्छा लगा है.. .
शुभ-शुभ
Yogi Saraswat JI....by Laxman Prasad Ladiwala JI....Dr. Swaran J. Omcawr JI....आप सब का दिल से हार्दिक धन्यवाद......
आप सब का दिल से हार्दिक धन्यवाद .... Dr.Prachi Singh JI....
ram shiromani pathak JI....बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) JI आप सब का दिल से हार्दिक धन्यवाद ....
Behad Khoobsurat
Swaran
सपनो को मध्यम बना वर्तमान छटपटाते जीवन पर सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई श्री पवन अम्बा जी
जरूरतों के पिंजरे में कैद
कभी निकले तो
ज़रा फडफडाये
पर मजबूरियों के पत्थर
वक्त के हाथों में हमेशा दिखे
और निशाना भी पक्का
उड़ने से पहले ही लगे
सुन्दर अभिव्यक्ति
हालात और ज़रूरतें मासूम सपनों को कैसे रौंद डालते हैं...ये छटपटाहट सुन्दरता से अभिव्यक्त हुई है
हार्दिक बधाई
//काश , ये पत्थर जरा हलके होते तो
शायद ,छटपटाते ,हिलते हिलाते
नीचे से निकल आते अधमरे से //
बहुत ही सुन्दर! अप्रतिम! आपने जो चित्र खींचा है आंखों से होता हुआ दिल में उतर गया।
सादर!
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