आज इतनी जल्दी क्लिनिक बंद कर के कैसे आ गए डॉक्टर साहब निशा ने दरवाज़ा खोलते ही अपने पति से पूछा|डॉक्टर अरुण बोले आज एक ऐसी पेशेंट आई जो तीन बेटियों की माँ थी और चौथी बार गर्भवती थी बोली डॉक्टर साहब मुझे गर्भ से ही एहसास हो रहा है कि ये उस कमीने का होने वाला बीज लड़का ही है जो मुझे नही चाहिए मैं नही चाहती कि कल वो भी किसी की बेटी पर उतने ही जुल्म ढाये जो इसके बाप ने मेरे और मेरी बेटियों के ऊपर ढाये|और हैरानी की बात ये थी कि वो सच ही कह रही थी उसके गर्भ में लड़का ही था,और मैं नियम क़ानून से बंधा उसकी कोई मदद ना कर सका|बस तब से अपने आप को अस्वस्थ महसूस कर रहा हूँ इस लिए सब कुछ बंद कर के आया हूँ ,जल्दी से चाय पिला दो तो आराम करूँ,और ये सब सुनकर निशा निशब्द,यंत्रवत अपने गर्भ पर हाथ फिराती हुई किचन की और चल दी|
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प्रिय नूतन जी आप का कहना सही है एक डॉक्टर कि मनोस्थिति को आपसे बेहतर और कौन जान सकता है हार्दिक आभार आपका कहानी आपको पसंद आई |
बहुत सशक्त कहानी... आज की परिस्तिथि की ... सच में यह हम देखते आये हैं कि समाज में स्त्री को कितने ही कष्टों से गुजरना पडता है ... डॉ ऐसे कार्यों में साथ नहीं देना चाहता पर एक दुःख और एक क्षोभ हाहाकार मचाता उसके कलेजे में...
विजय मिश्र जी मुझे बहुत अच्छा लगा कि कहानी को मनोवैज्ञानिक ढंग से सुलझाने की कोशिश की है बस ये कहना चाहूँगी कि ये सच है कि गर्भस्थ शिशु का स्वास्थ्य व विकास नारी के खान पान और उसकी दी हुई नैतिक शिक्षा पर किसी हद तक निर्भर करता है किन्तु उसके मानसिक ढाँचे में उसके जींस अधिक प्रबल होते दिखाई दिए हैं जो एक डॉक्टर भी जानता है,पति के आचरण के कारण एक स्त्री यह फेंसला ले सकती है उसे उस स्त्री से सहानुभूति भी होती है किन्तु वो मदद करने में असमर्थ है उसकी इसी मानसिक दुविधा को दर्शाया है आपका हार्दिक आभार|
आदरणीय सौरभ जी हार्दिक आभार आपने कहानी के ताने बाने को समझा और सराहा,नफरत जब हद से बढ़ जाती है तो उसकी परछाई से भी नफरत हो जाती है कि इनसान कोई भी फेंसला लेने पर मजबूर हो जाता है ऎसे समाज कैसे चलेगा निम्न वर्गीय लोगों में तो यह एक जटिल समस्या है बेटे कि चाह में पत्नी पर जुल्म ढाता रहता है,वो कब तक सहेगी|
अरुण की कश्मकश, निशा का अपने पेट पर हाथ फिराना, उस पेशेंट का भयातुर प्रलाप ! वाह !.. .
कथा वस्तुतः पाठकों का इम्तहान लेती है.
इस कथा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीया राजेशकुमारीजी.. ..
हार्दिक आभार मंजरी पांडेय जी पानी जब सर से ऊपर हो जाता है बाहर निकलने की सद् बुद्धि भी भगवान ही देता है जागृती आएगी जरूर रफ्तार जरूर धीमी है
हार्दिक आभार विनीता शुक्ल जी कहानी के मर्म का अनुमोदन हेतु |
राजेश कुमारी जी बधाई। माताएं सब इतनी संवेदनशील हो जातीं तो कायापलट होने की देर कहाँ ?
थोड़े ही में ही आपने बहुत बड़ी बात कह दी. पुरुषवादी मानसिकता को चुनौती देने वाली, नारी के साहस की, प्रभावी कथा. बधाई राजेश कुमारी जी.
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