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साधन मात्र (लघुकथा)

जब भी राकेश देर रात तक काम करते हैं रानी कितना ख्याल रखती है | जब तक वो  काम करते हैं रानी दोनों बच्चों को मुंह पर उंगुली रख कर चुप कराती रहती है | बीच-बीच में उनको चाय बना के दे आती है | राकेश भी उसे बुला के सामने बैठा लेते हैं –“तुम सामने रहती हो तो काम जल्दी हो जाता है” ये बोल कर कितना लाड दिखाते हैं | जब तक वो काम करते रहते है रानी भी जागती रहती है फिर सुबह जल्दी उठ कर बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज देती है | बच्चे अगर जोर से बोलते हैं तो उन्हें चुप करा देती है “ पापा रात देर से सोये है शोर मत करो “  बच्चे भी चुप हो जाते हैं | राकेश ९ बजे सो कर उठते हैं तब तक उनका नाश्ता और लंच दोनों तैयार कर के दे देती है और वो ऑफिस चले जाते हैं |
 हर सम्भव ख्याल रखती है, उनके जूते,कपड़े,उनकी सेविंग किट यहां तक कि उनकी फाईलें भी वही संभालती है | पर जब भी वो कुछ पढ़ने या लिखने बैठती है तो राकेश को जाने क्या हो जाता है और उनका व्यवहार बहुत रूढ़ हो जाता है |
आज भी वो सब काम खत्म कर के अपनी कविता लिख रही थी तो राकेश ने कितनी जोर से डांट दिया –“जब देखो ये फालतू का काम ले के बैठ जाती हो मेरे लिए तो समय ही नही तुम्हारे पास, लाइट बंद करो सोऊँगा नही तो कल ऑफिस में सिर दर्द होगा तुम्हे क्या घर में पड़ी सोती रहोगी”|

रानी अपनी डायरी और कलम समेटती हुई दुखी मन से उठती है और आल्मारी में रख देती है | एक यही काम तो वो खुद की खुशी के लिए करती है बाकी सारा दिन तो सब के लिए जीती है और बस इतनी सी बात राकेश को बर्दास्त नही होती |
रानी लाइट बंद कर के लेट जाती है और अपने आँसू पोंछते हुए सोचने लगती है कि उसने तो कभी नही कहा – मुझे माइग्रेन है मैं देर रात तक तुम्हारे साथ जागती हूँ तो अगले दिन मुझे माइग्रेन का अटैक पड़ जाता है | मै किस तरह दवा खा के घर का और बच्चों का काम करती हूँ तुम्हे क्या पता तुम तो शाम को आते हो और मेरा सूजा हुआ चेहरा देखते हो तो यही कहते हो कि - " अभी सो कर उठी हो क्या जो तुम्हारा चेहरा इतना सूजा हुआ है" अब मैं तुम्हे क्या बताऊँ कि मेरा चेहरा सोने से नही माइग्रेन की वजह से सूजा हुआ है | अंघेरे में रानी अपने आँसू बार बार पोंछ लेती है इतने में राकेश का भरी भरकम हाथ उसके उपर आ जाता है और वो उस हाथ के नीचे अपने आप को दबा हुआ महसूस करती है | मैं क्या हूँ राकेश के लिए सिर्फ उनकी जरूरतों को पूरा करने का एक साधन मात्र बस ….और कुछ नही |

राकेश जान ना जाएं इस लिए रानी धीरे से अपनी आँखों को पोंछ के सुखा देती है ||


मौलिक व अप्रकाशित 

मीना पाठक 



 

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Comment by Meena Pathak on June 17, 2013 at 5:58pm

आदरणीय माथुर साहब .. बहुत-बहुत आभार 

Comment by D P Mathur on June 15, 2013 at 8:25pm

आप जिसे मात्र लधु कथा समझ कर सहज भाव से लिख गई ,
वो इतनी सहज बात नही है ! बचपन से आज तक मैं ही नही लगभग
प्रत्येक सदस्य ने कहीं ना कहीं इसे जीवंत देखा है यदि किसी ने इसका विरोध
किया है तो वह लड़ाकू कहलाई है लाख कौशिशों बाद भी अभी नारी पूर्ण स्वतंत्र
नही हो पाई है ! ऐसी रचनाओं से अगर एक पुरूष को भी आप नारी
की यह वेदना बता बदल सकने में कामयाब हो सकी तो लिखना सार्थक हो जायेगा !
आपको धन्यवाद -डी पी माथुर

Comment by Meena Pathak on June 15, 2013 at 6:27pm

अमन कुमार जी, प्रियंका जी  सादर आभार आप दोनों को 

Comment by Meena Pathak on June 15, 2013 at 6:25pm

आदरणीया प्राची जी बहुत - बहुत आभार ..

Comment by aman kumar on June 14, 2013 at 11:36am

सही स्थिति चित्रण है इस कथा का ..... जीवन की मार्मिक सच्चाई स्त्री मूल्य समाज मे अभी भी ...........

परिवेर्तन स्त्री समाज ही ला सकती है ! 

आभार 

Comment by Priyanka Tripathi on May 27, 2013 at 5:02pm

हिर्दय-स्पर्शी...... बहुत सुन्दर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 14, 2013 at 12:05pm

आदरणीया मीना जी, 

पुरुष प्रधान समाज, पुरुष को दी जाने वाली परवरिश, किसी भी काम की सार्थकता को उसके द्वारा किये जाने वाले अर्जित धन से आंकने की सोच, स्त्री के शौकों व सोच के प्रति संवेदनहीनता, घर में महिलाओं के कभी न ख़त्म होने वाले कामों को काम ही ना माना जाना, ये कई ऐसी बाते हैं जिन्होंने हमारे समाज में परिवार संस्था को खोखला बना दिया है....

स्त्री जब किसी की खुशी के बारे में गलती से सोचना भूल जाए तो भी वो दोषी, और यदि, अपनी लिए अपनी मर्जी से जीने के कुछ पल निकाल ले तो भी वही दोषी...... पता नहीं कैसा समाज होता जा रहा है.

एक बहुत ही मर्मस्पर्शी विषयवस्तु को लघु कथा का कथानक बना लिखी गयी लघुकथा 'साधन मात्र' मिझे बहुत पसंद आयी... हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर.

सादर.

Comment by Meena Pathak on March 14, 2013 at 12:01pm

रचना की तह तक पहुँचने के लिए सादर आभार वेदिका जी 

Comment by Meena Pathak on March 14, 2013 at 11:58am

आदरणीय सौरभ जी पूरी कोशिश करूँगी गलतियों को सुधारने की .. सादर आभार 

Comment by Meena Pathak on March 14, 2013 at 11:53am

आदरणीय विजय निकोर जी आशा करती हूँ कि आप का स्नेह आप आशीष यूँ ही बना रहेगा.... सादर आभार 

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