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अपना काम निकाल,भूल हमको वो जाता।
कहता उसको आम,बना जो भाग्य विधाता॥
मन पछताये खूब,बेल विष नेता बोया।
ठगे गये हम लोग,देख अपनापन खोया॥

हमको ले पहचान,वोट लेना जब होता।
सबसे दुआ-सलाम,कौल जमके वह करता॥
सुधरा चतुर सियार,लगे हर जन को गोया।
ठगे गये हम लोग,देख अपनापन खोया॥

जीता चतुर सियार,चाल अब बदली उसकी।
भूला सारे कौल,हौल अब मन में उठती॥
टूटे सारे ख्वाब,हृदय विह्वल हो रोया।
ठगे गये हम लोग,देख अपनापन खोया॥

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Comment by mrs manjari pandey on March 1, 2013 at 12:47pm

विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी " रोला गीत " मन को भाया  .

Comment by pawan amba on February 28, 2013 at 7:07pm

bahut khub sir..

Comment by Shyam Narain Verma on February 28, 2013 at 2:28pm

kya bat hai

Comment by ram shiromani pathak on February 27, 2013 at 9:16pm

हमको ले पहचान,वोट लेना जब होता।
सबसे दुआ-सलाम,कौल जमके वह करता॥
सुधरा चतुर सियार,लगे हर जन को गोया।
ठगे गये हम लोग,देख अपनापन खोया॥

बहोत  ही बढ़िया व्यंग बड़े भाई जी ......हार्दिक  बधाई
रोला गीत में  दोहे के विपरीत मात्रा लेकर चलते है क्या भाई जी ...
कृपा कर इसके बारे में कुछ बताइयेगा ........सादर

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