For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कंह गोरी पनघट कहाँ,कंह पीपल की छांव।
पगडंडी दिखती नहीं,बदल रहा है गांव॥
बदल रहा है गाँव,खत्म है भाईचारा।
कुछ परिवर्तन ठीक,किन्तु कुछ नहीं गवारा॥
ग्लोबल होते गाँव,गाँव की मार्डन छोरी।
कहें विनय नादान,कहाँ पनघट कंह गोरी॥

पगडंडी ये गाँव की,सड़क बनी बेजोड़।
जो जाती है शहर को,जन्म-भूमि को छोड़॥
जन्म-भूमि को छोड़,कमाने रोजी जाते।
करते दिनभर काम,रात फुटपाथ बिताते॥
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गाँव की वो पगडंडी॥

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 836

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pawan amba on February 27, 2013 at 4:21pm

हमको आये याद,गांव की वो पगडंडी॥...sach bahut yaad aati hai.....

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:13pm
आदरणीय भाई रामशिरोमणि पाठक जी!हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:12pm
आदरणीय भाई सुजान सिंह जी!हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:11pm
आदरणीय भाई सुजान सिंह जी!हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:10pm
आदरणीय अरुण सर जी रचना की सराहना के लिये हार्दिक आभार
Comment by ram shiromani pathak on February 25, 2013 at 9:08pm

बहुत गहरी बात त्रिपाठी जी शानदार रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 9:04pm
आदरणीय रविकर जी रचना की सराहना के लिये आभार व बेहतरीन ध्वन्यात्मक अनुप्रास अंलकार युक्त प्रतिक्रिया कुंडलिया रचना के लिये बधाई।
Comment by सूबे सिंह सुजान on February 25, 2013 at 5:14pm

wah bhai...........sunder hn aapki kundliyan.............

पगडंडी ये गांव की,सड़क बनी बेजोड़।
जो जाता है शहर को,जन्म-भूमि को छोड़॥
जन्म-भूमि को छोड़,कमाने रोजी जाते।
करते दिनभर काम,रात फुटपाथ बिताते॥
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गांव की वो पगडंडी॥

Comment by Abhinav Arun on February 25, 2013 at 3:24pm
बहुत गहरी बात त्रिपाठी जी शानदार रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !!
 
भर विकास का दम्भ,शहर कितना पाखंडी।
हमको आये याद,गांव की वो पगडंडी॥
 
प्रभावी और सारगर्भित पंक्तियाँ !!
 
Comment by रविकर on February 25, 2013 at 2:55pm

बहुत बढ़िया है आदरणीय -

मॉडर्न की प्रिंटिंग ठीक कर लें-

एक प्रतिक्रिया -

आभार

प्रेरणा मिली

सादर -

गोरु गोरस गोरसी, गौरैया गोराटि ।

गो गोबर गोरस गणित, गोशाला परिपाटि ।

गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी ।

पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी ।

गाँव गाँव में जंग, जमीं जर जल्पक जोरू ।

भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत धन्यवाद। आप का सुझाव अच्छा है। "
8 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से मश्कूर हूँ।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
7 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service