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जब उडाये लाल मौसम हो गया///गीत

बसंत के मौसम को समर्पित एक गीत 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर 

जब उड़ाए

लाल मौसम हो गया

नींद बिछड़ी

ख्वाब से

तो यक ब यक 

बड़बड़ाने सी लगीं 

खामोशियाँ .....

  टांग कर दीवार पर 

आँखों को अब 

भीड़ में चलने लगीं 

तन्हाइयां ....

मौन शब्दों के अधर 

जब हो गए   

और भी वाचाल 

मौसम हो गया

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर 

महकते अहसास में 

लिपटे हुए

पल यूँ सिमटे 

मखमली सी 

छाँव में 

चन्दनों के जंगलों 

से ज्यों हवा 

घूम कर लौटी हो 

अपने गाँव में 

गीत जब मन की

नदी से बह चले  

खुद-ब-खुद लय ताल

मौसम हो गया 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर

 

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Comment

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Comment by वेदिका on February 19, 2013 at 7:02pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी ...

वैसे तो हर रचना अपने आप में परिपक्व होती है लेकिन आपने जो बंदिश बताई है गजब की है । 

अनछुए पल मुट्ठियो को खोल कर जब उड़ाये लाल मौसम हो गया ---

सादर वेदिका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 6:46pm

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर 

जब उड़ाए

लाल मौसम हो गया-----

अनछुए पल मुट्ठियो को खोल कर जब उड़ाये लाल मौसम हो गया ----क्या सीमा जी इस बंद को ऎसे कहें तो ठीक नही होगा ???
ये पंक्ति इतनी सुंदर रची हैं कि बिन माँगें सलाह कि हिमाकत कर रही हूँ
आपके इस गीत ने मन मुग्ध कर दिया जी चाहता है आपकी कलम चूम लूँ इससे अधिक और क्या कहूँ

 

Comment by Arun Sri on February 19, 2013 at 6:20pm

क्या बात है ! किसी एक बंद को रेखांकित करना बहुत मुश्किल !
लगता है सारा बसंत आपके गीतों में समां गया है ! सुन्दर और मनोहारी गीत !

Comment by नादिर ख़ान on February 19, 2013 at 4:35pm

नींद बिछड़ी
ख्वाब से
तो यक ब यक 
बड़बड़ाने सी लगीं 
खामोशियाँ .....

 

टांग कर दीवार पर 
आँखों को अब 
भीड़ में चलने लगीं 
तन्हाइयां ....

 

आदरणीय सीमा जी सुंदर बसंत गीत के लिए बधाई स्वीकार करें 

Comment by वेदिका on February 19, 2013 at 3:33pm

सुंदर गीत ... धारा प्रवाह .

अनछुए पल 
मुट्ठियों में घेर कर 
जब उड़ाए
लाल मौसम हो गया .... खुबसूरत फिलोसफी उन पलों की .

नींद बिछड़ी
ख्वाब से
तो यक ब यक 
बड़बड़ाने सी लगीं 
खामोशियाँ .... बहुत बढ़िया सीमा जी बहुत सही काव्य चित्रण किया है  सपने से उठकर  ख़ामोशी के बड़ बड़ा ने का ..

बधाई!

Comment by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 2:50pm

 प्रवाह जोरदार है आदरणीया इस गीत हेतु बहुत बहुत बधाई आपको..........................

Comment by Meena Pathak on February 19, 2013 at 2:08pm

बहुत सुन्दर गीत ... बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 19, 2013 at 1:53pm

महकते अहसास में
लिपटे हुए
पल यूँ सिमटे
मखमली सी
छाँव में
चन्दनों के जंगलों
से ज्यों हवा
घूम कर लौटी हो
अपने गाँव में
गीत जब मन की
नदी से बह चले
खुद-ब-खुद लय ताल
मौसम हो गया

वाह वाह वा क्या बात है सुंदर गीत

थोड़ा मुत्ठियों मे घेर कर वाली बात अजीब सी लगी "ये केवल मेरे विचार हैं, हर कवि का एक अपना मन होता है और वो उसके अनुरूप ही लिखता है

किंतु प्रवाह जोरदार है आदरणीया इस सरस गीत हेतु बहुत बहुत बधाई आपको
अनुज पर स्नेह बनाए रखिए

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