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उल्लाला गीत: जीवन सुख का धाम है -संजीव 'सलिल

अभिनव प्रयोग-
उल्लाला गीत:
जीवन सुख का धाम है
संजीव 'सलिल'
*
जीवन सुख का धाम है,
ऊषा-साँझ ललाम है.
कभी छाँह शीतल रहा-
कभी धूप अविराम है...*
दर्पण निर्मल नीर सा,
वारिद, गगन, समीर सा,
प्रेमी युवा अधीर सा-
हर्ष, उदासी, पीर सा.
हरी का नाम अनाम है
जीवन सुख का धाम है...
*
बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.
अनुरागी निष्काम है
जीवन सुख का धाम है...
*
वागी आलमगीर सा,
तुलसी की मंजीर सा,
संयम की प्राचीर सा-
राई, फाग, कबीर सा.
स्नेह-'सलिल' गुमनाम है
जीवन सुख का धाम है...
***

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Comment by sanjiv verma 'salil' on February 3, 2013 at 4:16pm

आत्मीय लक्ष्मण प्रसाद जी, अशोक जी, संदीप जी, सौरभ जी, अरुण जी
इस प्रयोग को सराहकर उत्साह बढ़ाने हेतु आभार.
सौरभ जी की विवेचना तथा अरुण जी की रचना मनोहारी है- विशेष आभार.
आगम-निगम सराहिए,
नव सौरभ बिखराइए.
आत्म देव संदीप हों-
हो अशोक कुछ गाइए.
कोप न करिए लक्ष्मण सा,
सिया-राम वत शांत हों.
काव्य कानन कुसुम किसलय
कांतिमय कवि कान्त हों..
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 1:06pm

लगा नर्मदा नीर सा

धुँआधार के क्षीर सा

माखन और पनीर सा

गुरतुर गुरतुर खीर सा

पूरा छप्पन भोग है

अभिनव मस्त प्रयोग है

संगमरमरी रूप है

ज्यों जाड़े की धूप है

यह साँची का स्तूप है

मंगल और अनूप है

यह योगी का योग है

अभिनव मस्त प्रयोग है...........

बधाई आदरणीय....................


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 5:48am

एक उन्नत छंद-प्रयास पर वाह की अभिव्यक्ति के पूर्व हम इस प्रयास को अनुशासित रूप से स्वीकार करें. प्रस्तुति में ज़मीनी बिम्बों का इतना सुन्दर प्रयोग हुआ है कि आपके प्रयास को मन बार-बार प्रणाम करता है. अनुप्रास के अनुशासन को बनाये रखने के क्रम में शब्दों का इतना सुन्दर संग्रह और उनकी ऐसी प्रस्तुति बस मोह लेती है, आदरणीय !

बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.

प्रेमातिरेक का उत्कर्ष, भौतिक संतुष्टि से मानसिक उन्नयन की पराकाष्ठा, बलात् पौरुषप्रदर्शन का देवदत्ती आयाम, मतायेपन का आध्यात्मिक प्रारूप, इन चार पंक्तियों में यह सारा कुछ इतनी खूबसूरती से निखर कर सामने आया है कि संतुष्ट होने के साथ-साथ पाठक मन चकित भी हो जाता है.

आपकी इस प्रस्तुति के लिए सादर धन्यवाद.. .

शुभ-शुभ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 7:08pm

क्या बात है सर जी बहुत सुन्दर वाकई अभिनव ............साधुवाद आपके इस नयेपन को

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर प्रणाम

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 2, 2013 at 1:34pm

वागी आलमगीर सा,
तुलसी की मंजीर सा,
संयम की प्राचीर सा-
राई, फाग, कबीर सा.
स्नेह-'सलिल' गुमनाम है
जीवन सुख का धाम है...

परम आदरणीय सलिल जी सादर, बहुत सुन्दर उलाला गीत,उलाला छंद तो अवश्य पढ़ा है गीत पढाने का प्रथम ही अवसर है. सुन्दर गीत पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 11:55am

जीवन सुख का धाम है 

हरी का नाम अनाम है

ऊषा-साँझ ललाम है.
कभी धूप अविराम है...* - सुन्दर और यथार्थ चित्रण भरा गीत है, बहुत खूब हार्दिक बधाई आदरणीय संजीव सलिल जी 

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