For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे/चौबारे क्‍यों हमें डराय

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे

चौबारे क्‍यों हमें डराय.. .

उदयाचल का

कोई जादू

कंगूरों पर

चल ना पाय

**कल जोड़े

भयभीत किरण भी

पल-पल काया

खोती जाय

पड़े तीलियों

के भी टोंटे

झूठे दीपक कौन जलाय ?

कहो दर्द के.....................

रोटी-बेटी

पर चिनगारी

रोज पुरोहित

ही रख आय

उलटा लटका

सुआ समय का

बड़े नुकीले

सुर में गाय

हर फाटक पर

जड़कर ताले

सन्‍नाटा खुलकर बतियाय  ?

कहो दर्द के.....................

कलश-फूल भी

सहमे-दुबके

ताल-मंजीरे

बज ना पाय

गलते भावों

की रसरी भी

विषम बोझ यह

सह ना पाय

बेफिक्री की

घास कट गई

शबनम अब किस पर इतराय  ?

कहो दर्द के.....................

अधर बिलखते

थाली पाकर

कौर कहां से

मुंह में जाय

हर चेहरे पर

धंसा मुहर्रम

सोलह आने

धमक डराय

गर्द बहुत

हमने थी झाड़ी

मन से **उख-बिख पर ना जाय  ?

कहो दर्द के.....................

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

संदर्भानुसार प्रयुक्‍त शब्‍द

**कल जोड़ना- हाथ जोड़ना, **उख-बिख- बेचैनी

Views: 827

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on February 1, 2013 at 11:08am

आदरणीय रक्‍ताले जी, महिमा जी एवं राम शिरोमणि जी आप सबका हार्दिक आभार

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 31, 2013 at 10:09pm

पड़े तीलियों

के भी टोंटे

झूठे दीपक कौन जलाय ?...........वाह! बहुत सुंदर.

आदरणीय राजेश जी सादर, बहुत बढ़िया यह नवगीत रचना पंक्ति पंक्ति बार बार पढ़ने को मन कर रहा है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by MAHIMA SHREE on January 31, 2013 at 8:34pm

वाह !! बहुत ही अलग प्रस्तुति .. नए बिम्बों के साथ अंतस को  भिंगो गयी

Comment by ram shiromani pathak on January 31, 2013 at 1:46pm

 उत्तम रचना हार्दिक बधाई मित्र !!!!!!!

Comment by राजेश 'मृदु' on January 31, 2013 at 12:07pm

आदरणीय प्राची जी, मेरी पिछली रचना 'सदभावों की थोड़ी खुशबू' पर दी गई आपकी प्रतिक्रिया ने ही अपना रंग दिखाया है, कोशिश की है कि थोड़ा समय देकर, संभल-सोचकर लिखूं , आगे सब तो गुरुजनों के हवाले है, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 31, 2013 at 11:49am

आदरणीय साजेश जी,

एक बिलकुल ही अलग से विषय पर लिखी गयी बहुत ही समृद्ध रचना है ये...बहुत सुन्दर शब्द, भाव, प्रवाह, बिम्ब, शब्द- चित्र,

बहुत खूबसूरत.

हार्दिक बधाई .

Comment by राजेश 'मृदु' on January 31, 2013 at 11:33am

आदरणीय सौरभ जी,राजेश कुमारी जी, संदीप जी, प्रवीण जी एवं निकोर साहब, आप सबकी उपस्थिति एवं रचना पर साझा किए गए विचार हमेशा ही मुझे ऊर्जा प्रदान करेंगें, स्‍नेह बनाए रखें, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2013 at 10:44pm

इतनी आत्मीय लगी है आपकी यह प्रस्तुति कि मैं पंक्ति-दर-पंक्ति बार-बार गुनगुना रहा हूँ. बिम्बों को आपने जिस सुन्दरता से पिरोया है, उनको जिस सुन्दरता से अर्थ दिये हैं आपने कि सारा कुछ विस्मित-सा कर रहा है, राजेश भाईजी.

एक अद्भुत और हर तरह से समृद्ध रचना है. वाकई बहुत दिनों बाद कोई नवगीत पढ रहा हूँ जो मुझे बहाये ले जारहा है. पिछला इसी तरह का नवगीत भी संभवतः आपही का था, राजेशभाई.

इन पंक्तियों पर क्या कहूँ -

गलते भावों
की रसरी भी
विषम बोझ यह
सह ना पाय
बेफिक्री की
घास कट गई
शबनम अब किस पर इतराय ?

लेकिन सम्पूर्ण नवगीत ही कई-कई स्तरों पर अपनी धमक बना रहा है. आपकी गंभीर कोशिश और उन्नत रचनाधर्मिता को मेरा सादर नमन.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2013 at 8:07pm

रोटी-बेटी

पर चिनगारी

रोज पुरोहित

ही रख आय

उलटा लटका

सुआ समय का

बड़े नुकीले

सुर में गाय

हर फाटक पर

जड़कर ताले

सन्‍नाटा खुलकर बतियाय  ----खूबसूरत शब्द संयोजन ,भावोँ से गुंथी बेहतरीन रचना बहुत अच्छी लगी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 6:21pm

बेहतरीन नज्म हुई साहब मजा आ गया वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
15 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service