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रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने

जुरत-आमोज मेरे दिल ये क्या किया तूने
खगूर-ए-हम्द से भी कर लिया गिला तूने

फ़िक्रे-फ़र्दा न कोई गम कभी रहा हमको
कजा से संग दिल मेरे बचा लिया तूने

सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन
हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने

अजल से चल रहा है क्या कभी ये सोचा है
रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने

खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ
जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??

संदीप पटेल "दीप"

जुरत-आमोज - साहस सिखाने वाला
खगूर-ए-हम्द - प्रशंसा करने के आदी
फ़िक्रे-फ़र्दा - कल की चिन्ता

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 4:49pm

आदरणीया उपासना जी .....ग़ज़ल को सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 4:48pm

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम

आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन सार्थक हुआ ..

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by upasna siag on February 1, 2013 at 5:17pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल 

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 31, 2013 at 10:39pm

आदरणीय भाई संदीप जी सादर, वाह वाह बहुत बढ़िया गजल रची है.बहुत बहुत दाद कबूलें. इस बात के लिए भी कि कुछ उर्दू लफ्जों का हिंदी मायना भी आपने लिख दिया है.वरना हम जैसे जो हिंदी ठीक से नहीं समझ पाते उर्दू को कैसे समझ पायें.आभार.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 8:50pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम

आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपसे दाद मिली

बहुत हर्ष हुआ

अपना ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2013 at 8:22pm

प्रिय संदीप शानदार ग़ज़ल कही है उर्दू शब्दों का इस्तेमाल भी सही जगह किया है दाद कबूलें 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:51pm

जी आदरणीय ये तो सिर्फ प्रयोग की तरह इस्तेमाल कर लिया है आगे ख्याल रखूँगा की आसान शब्दावली स्तेमाल हो

आपका बहुत बहुत शुक्रिया सराहना हेतु

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:50pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम

आपने ग़ज़ल पसंद की उसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया और आभार

स्नेह यूँ ही बनाए रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:48pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार भाई अरुण जी .......

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 4:47pm

आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

आपने सच कहा लेकिन उन दोनों शेर को लिखते समय एक जुनू था की कहीं ये अर्थ भूल न जाऊं तो प्रयोग ही कर लेता हूँ

इस तारीफ़ और हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

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