For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सन्नाटे की साँय-साँय
झींगुर की झाँय-झाँय
सूखे पत्तों पे कीट की सरसराहट
दर्जनों ह्रदयों की बढाती घबराहट
हरेक मानो मौत की डगर पर...
चलने को अग्रसर...
पपडाए होंठ सूखा हलक
ज़िन्दगी नहीं दूर तलक
चाँद की रौशनी भी
हो चली मद्धम जहाँ..
ऐसे मौत के घने जंगल हैं यहाँ,
हाथ में बन्दूक,ऊँगली घोड़े पर
ह्रदय है विचलित पर स्थिर है नज़र..
ना जाने और कितनी साँसें लिखी हैं तकदीर में..
एक बार फिर तुझे देख लूं तस्वीर में..
जेब को अपनी टटोलता-खंगालता,
बटुएनुमा एक वस्तु निकालता,
हौले से उसके पटों को खोलता,
मन-ही-मन उस तस्वीर से बोलता,
सन्नाटे से डरता,
आवाज़ से घबराता,
मन-ही-मन वो है बुदबुदाता,
छूट जाये जो साथ अपना,
तो गम ना करना...
माँ-बाबू और बच्चों को संभालना,
आँख तुम नम ना करना..
ना जाने ये दानव जीने देंगे या नहीं..
मै अपना, तुम अपना फ़र्ज़ अदा करना..
रह गया अधूरा ये वार्तालाप
सन्नाटे को चीरती आई मौत की आवाज़..
धंस गयी कलेजे में उसके वह गोली..
कोई और नहीं वे थे नक्सली...
गिरा बटुआ एक ओर
भीग गए नैनो के कोर
चारों ओर है दावानल
चीखों और मृत्यु का शोर
ज़िन्दगी मानो उससे दूर जा रही है...
एक मीठी सी नींद आ रही है...
प्रिये, इस जनम में अपने देश का क़र्ज़ चुकाया
अगले जनम तुम्हारा चुकाऊंगा
यदि तुम चाहोगी तो तुम्हारा सहचर
बनकर फिर आऊंगा...
दुआ करना हमारे वतन में हो तब अमन औ शांति...
वर्ना फिर किसी जंग की भेंट चढ़ जाऊंगा...............!!!
- रोली पाठक

Views: 384

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2011 at 3:48pm

मेरी दृष्टि से अभी तक प्रस्तुत रचना गुजरी नहीं इसके लिये मैं स्वयं को अधिक दोषी मानता हूँ. कविता जिस तरह के शब्द और उन शब्दों के जिस तरह के गठन से समृद्ध है, वह रचयिता की भाव-प्रौढ़ता को दर्शाता है. रचयिता को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

निरन्तर प्रयास शब्द-संयोजन में और ठहराव का कारण होगा, अस्तु.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2010 at 6:39pm
प्रिये, इस जनम में अपने देश का क़र्ज़ चुकाया
अगले जनम तुम्हारा चुकाऊंगा
यदि तुम चाहोगी तो तुम्हारा सहचर
बनकर फिर आऊंगा...
दुआ करना हमारे वतन में हो तब अमन औ शांति...
वर्ना फिर किसी जंग की भेंट चढ़ जाऊंगा...............!!!

रोली पाठक जी, बिना लड़े ही शहीद हो जाना, वो भी बाहरी दुश्मनों की गोलियों से नहीं बल्कि अपने ही घर के दुश्मनों से, बहुत ही दुःख होता है, आपने एक सिपाही के दर्द को बहुत ही अच्छे से उकेरा है, बधाई इस काव्य कृति पर, आगे भी आपकी रचनाओं का इन्तजार रहेगा |
Comment by आशीष यादव on November 3, 2010 at 6:47am
एक फौजी की मार्मिक अन्तर्दशा को खूबसूरती से प्रकट किया आपने|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service