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सन्नाटे की साँय-साँय
झींगुर की झाँय-झाँय
सूखे पत्तों पे कीट की सरसराहट
दर्जनों ह्रदयों की बढाती घबराहट
हरेक मानो मौत की डगर पर...
चलने को अग्रसर...
पपडाए होंठ सूखा हलक
ज़िन्दगी नहीं दूर तलक
चाँद की रौशनी भी
हो चली मद्धम जहाँ..
ऐसे मौत के घने जंगल हैं यहाँ,
हाथ में बन्दूक,ऊँगली घोड़े पर
ह्रदय है विचलित पर स्थिर है नज़र..
ना जाने और कितनी साँसें लिखी हैं तकदीर में..
एक बार फिर तुझे देख लूं तस्वीर में..
जेब को अपनी टटोलता-खंगालता,
बटुएनुमा एक वस्तु निकालता,
हौले से उसके पटों को खोलता,
मन-ही-मन उस तस्वीर से बोलता,
सन्नाटे से डरता,
आवाज़ से घबराता,
मन-ही-मन वो है बुदबुदाता,
छूट जाये जो साथ अपना,
तो गम ना करना...
माँ-बाबू और बच्चों को संभालना,
आँख तुम नम ना करना..
ना जाने ये दानव जीने देंगे या नहीं..
मै अपना, तुम अपना फ़र्ज़ अदा करना..
रह गया अधूरा ये वार्तालाप
सन्नाटे को चीरती आई मौत की आवाज़..
धंस गयी कलेजे में उसके वह गोली..
कोई और नहीं वे थे नक्सली...
गिरा बटुआ एक ओर
भीग गए नैनो के कोर
चारों ओर है दावानल
चीखों और मृत्यु का शोर
ज़िन्दगी मानो उससे दूर जा रही है...
एक मीठी सी नींद आ रही है...
प्रिये, इस जनम में अपने देश का क़र्ज़ चुकाया
अगले जनम तुम्हारा चुकाऊंगा
यदि तुम चाहोगी तो तुम्हारा सहचर
बनकर फिर आऊंगा...
दुआ करना हमारे वतन में हो तब अमन औ शांति...
वर्ना फिर किसी जंग की भेंट चढ़ जाऊंगा...............!!!
- रोली पाठक

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2011 at 3:48pm

मेरी दृष्टि से अभी तक प्रस्तुत रचना गुजरी नहीं इसके लिये मैं स्वयं को अधिक दोषी मानता हूँ. कविता जिस तरह के शब्द और उन शब्दों के जिस तरह के गठन से समृद्ध है, वह रचयिता की भाव-प्रौढ़ता को दर्शाता है. रचयिता को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

निरन्तर प्रयास शब्द-संयोजन में और ठहराव का कारण होगा, अस्तु.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2010 at 6:39pm
प्रिये, इस जनम में अपने देश का क़र्ज़ चुकाया
अगले जनम तुम्हारा चुकाऊंगा
यदि तुम चाहोगी तो तुम्हारा सहचर
बनकर फिर आऊंगा...
दुआ करना हमारे वतन में हो तब अमन औ शांति...
वर्ना फिर किसी जंग की भेंट चढ़ जाऊंगा...............!!!

रोली पाठक जी, बिना लड़े ही शहीद हो जाना, वो भी बाहरी दुश्मनों की गोलियों से नहीं बल्कि अपने ही घर के दुश्मनों से, बहुत ही दुःख होता है, आपने एक सिपाही के दर्द को बहुत ही अच्छे से उकेरा है, बधाई इस काव्य कृति पर, आगे भी आपकी रचनाओं का इन्तजार रहेगा |
Comment by आशीष यादव on November 3, 2010 at 6:47am
एक फौजी की मार्मिक अन्तर्दशा को खूबसूरती से प्रकट किया आपने|

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