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महिला उत्पीडन -कारण और निवारण

 
नारी  शब्द की ही क्यों बात करे, लड़की हो, महिला हो, स्त्री हो, पर अकेली हो, तो जो आकर्षण होता है, यह सर्व विदित है। 
यह इस समस्या के मूल में है । कैसा आकर्षण बनाया है नियति ने । जब आकर्षण होता है, मन लालायित होता है और 
भोग की वस्तु की तरह मन टूट पड़ता है । या तो सन्यासी जीवन हो, या फिर शिक्षा व्यवस्था प्राचीन गुरुकुल जैसी हो । 
वर्ना बड़े बड़े शिक्षित, पेशे से चिकित्सक जैसे लोग भी व्यभिचार में लिप्त पाए गए है । इसका मतलब है हमारी नैतिक 
शिक्षा बहुत कम रह गयी है । आज सदाचार सोपान का पाठ कितने शिक्षित लोगो ने किस स्तर तक पढ़ा है । यह सरकार 
और समाज के लिए अहम् और अनिवार्य रूप से विचारणीय है, जिसको कानूनी तौर पर कठोरता से लागू किये बगैर शिक्षा 
देने का लाइसेंस ही नहीं मिलना चाहिए ।
2. कानून व्यवस्था कदापि लचर न हो, कानून में बड़े साहबजादे, बड़े नेता, गुण्डे, माफियाँ, आदतन अपराधियों के
लिए सख्त कानूनों  की आवश्यकता को लागू कौन और कैसे करे, क्योंकि इन्ही के बल पर तो सारकार बनती और
चलती है । ये ही तो संसद में भाषण बाजी, लिपा-पोती कर इतिश्री करते है । कानून में फांसी की सजा का प्रावधान
आखिर इन्ही लोगो की संसद से ही बनेगा और लागू होगा । जब तक वर्ग भेद, और जातिवाद से ऊपर उठकर
संस्कारित और योग्य व्यक्तियों की संसद नहीं बने तब तक इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है । इसके लिए जनता जनार्दन
को शिक्षित और जागरूक करना ही एकमात्र उपाय है । अंत मे मै अपनी इन पंकित्यों को ही दुहराते हुए अपनी बात
समाप्त करता हूँ -
 
जहाँ पूजित है नारी वहां फिर क्यों शर्मसार हुई है,
स्वच्छंद विचरण का क्या उसको अधिकार नहीं है ।
जहाँ वोटों की राजनीति, गुण्डों की तूती बजती है,
पंगु है क़ानून व्यवस्था, जो हमको बेहद खलती है।
   
शर्म से झुक गयी आँखे, मानवता का ढोंग पीटते,
मजबूर हुई क्यों नारी,जिन्दा रहने का प्रश्न पूंछते।
लीक पीटते संसद में भी, इस पर जो शोर मचाते,
फांसी दो व्यभिचारी को,अब और विलम्ब न चाहते।
 
नहीं खेल विधना का नारी, यह खलनायको की चाल है,
गुरुकुल सा शिक्षण हो सभी का,अब इसकी ही दरकारहै।
कर्तव्य समझा और निभाया, सबको इसका गर भान  है,
जीवन को समझ इंसा बने, बस अब इसकी ही दरकार है ।
 
-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला 
 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 24, 2012 at 9:45am

जी मित्र श्री विजय निकोरे जी, स्थाई हल तो नैतिक शिक्षा में ही निहित है । हमारे समय में मैंने हाई स्कूल कक्षामें हिंदी में एक पुस्तक सदाचार सोपान के नाम से थी । आपने सही कहा है कि नैतिक सिक्षा बहुत कम रह गई है ।रचना पसंद कर मान बढाने के लिए हार्दिक आभार स्वीकारे ।  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 24, 2012 at 9:39am

वीभत्स घटना के सन्दर्भ में रचना के भाव पर साझा करने के लिए हार्दिक आभार मित्र श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी

Comment by vijay nikore on December 23, 2012 at 11:28pm

आदरणीय लक्षमण प्रसाद जी,

इसका मतलब है हमारी नैतिक

शिक्षा बहुत कम रह गयी है । आज सदाचार सोपान का पाठ कितने शिक्षित लोगो ने किस स्तर तक पढ़ा है

 

सशक्त अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद।

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

 

 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 23, 2012 at 9:37pm

नहीं खेल विधना का नारी, यह खलनायको की चाल है,

गुरुकुल सा शिक्षण हो सभी का,अब इसकी ही दरकारहै।
कर्तव्य समझा और निभाया, सबको इसका गर भान  है,
जीवन को समझ इंसा बने, बस अब इसकी ही दरकार है ।

 आदरणीय लड़ी वाला जी 

सादर 

आपकी भावनाओं को नमन 

बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 23, 2012 at 7:48pm

आभार महिमा जी, उम्मीद है हमारी जागरूक करने की कोशिशे रंग लाएगी 

सरकार और समाज एक दिन जागरूक होकर देश का मनन भी बढ़ाएंगे ।
Comment by MAHIMA SHREE on December 23, 2012 at 7:30pm
नहीं खेल विधना का नारी, यह खलनायको की चाल है,
गुरुकुल सा शिक्षण हो सभी का,अब इसकी ही दरकारहै।
कर्तव्य समझा और निभाया, सबको इसका गर भान  है,
जीवन को समझ इंसा बने, बस अब इसकी ही दरकार है .....

आदरणीय लक्ष्मण सर , नमस्कार

आपसे पुर्णतः सहमत हूँ / आशा है आम जन में भी जागरूकता सिर्फ कुछ पल के लिए नहीं बल्कि जीवन भर ले लिए आये / सरकार चेते / समाज जागे /

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 23, 2012 at 3:51pm

रचना का समर्थन करने के लिए आभार श्री अरुण शर्मा अनंत जी, यह तो सही है की शिकारी की तो तो दरिंदगी दिखाने का भूत सवार हो गया है । किन्तु यह समस्या अब हल करने के लिए सरकार और समाज को निम्न कदम उठाने बहुत आवश्यक है "-

1,शीघ्र और तत्कालिक कदम ऐसे दोषी व्यक्ति को शीघ्रातिशीघ्र कठोर सजा 
2. स्थाई उपाय के अंतर्गत सरकार और समाज द्वारा अनिवार्य नैतिक शिक्षा/सदाचार सोपान 
    द्वारा संस्कारित चरित्र निर्माण 
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2012 at 11:59am

आदरणीय लाडीवाल सर मैं आपकी बात से सहमत हूँ किन्तु आज कल जो घटनाएं घटित हो रही हैं उन्हें देख कर नहीं लगता की आकर्षण है ऐसा प्रतीत होता है कि शिकारी शिकार करने निकला है उसे जो मिल गया वही उसका ग्रास बन गया, उन्हें आकर्षण से कुछ लेना देना नहीं है उन्हें तो सिर्फ अपनी दरिंदगी दिखानी है चाहे हो कोई भी हो, अब तो ऐसा समय आ गया है नारी किसी पुरुष के साथ रह कर भी सुरक्षित नहीं है. खैर इस सामयिक रचना हेतु हार्दिक बधाई .

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