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ग़ज़ल नo-१ (योगराज प्रभाकर)

नफरत का अन्धकार यूं फैला दिखाई दे
नाम-ओ-निशान अमन का मिटता दिखाई दे !

काशी दिखाई दे कभी का'बा दिखाई दे,
नन्हा सा बच्चा जब कोई हँसता दिखायी दे !

जिनको भी ऐतमाद है अपनी उड़ान पर
उनको आसमान भी छोटा दिखाई दे !

वो शख्स जिसकी नींद ही खुलती हो शाम को,
उसको ये आफताब क्यूँ चढ़ता दिखाई दे !

खिड़की ही जब नहीं है कोई घर के सामने,
फिर कैसे भला चाँद का टुकड़ा दिखाई दे !

श्रद्धा नहीं तो हर नदी पानी के सिवा क्या ?
श्रद्धा हो ग़र तो हर नदी गंगा दिखाई दे

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 17, 2017 at 10:26pm
श्रद्धा नहीं तो हर नदी पानी के सिवा क्या ?
श्रद्धा हो ग़र तो हर नदी गंगा दिखाई दे...वाह वाह आदरणीय क्या खूबसूरत बात कही है..नमन है लेखनी को..सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 10:11pm

बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय सर , हर शेर लाजवाब है | हार्दिक बधाई आदरणीय |

Comment by Hilal Badayuni on September 23, 2010 at 2:01am
doosra matla (husn-e-matla) aur aahiri sher mujhe bahut pasand aaya aapka bade kam alfaaz me bahut achchi baat kahi hai aapne mubarak ho

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 12, 2010 at 9:45pm
आदरणीय आज़र साहिब, मैं दिल से मशकूर हूँ आपकी ज़र्रानवाजी और दरियादिली के लिए ! सादर !
Comment by धर्मेन्द्र शर्मा on May 10, 2010 at 1:25pm
waah bahut khoob... Alfaaz nahi hain is ghazal ki khoobsoorti baya'n karne ko Prabhu ji..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2010 at 10:35pm
Thanks a lot Kanchan ji for your appreciation.
Comment by Kanchan Pandey on May 5, 2010 at 9:47pm
Bahut hi sunder gazal hai, jitani tarif kiya jay kam hai, bahut hi badhiya,
Comment by Rash Bihari Ravi on May 5, 2010 at 2:42pm
श्रद्धा नहीं तो हर नदी पानी के सिवा क्या ?
श्रद्धा हो ग़र तो हर नदी गंगा दिखाई दे
man ko chu gaya

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2010 at 2:34pm
सतीश भाई, हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
Comment by satish mapatpuri on May 5, 2010 at 1:51pm
प्रभाकर जी , आपकी यह ग़ज़ल एक हकीकत है . धन्यवाद

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