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ग़ज़ल : कम रहे आखिर


पांव रिश्तों के जम रहे आखिर
हम हकीकत में कम रहे आखिर |

जिनके दिल पर भरोसा पूरा था
उनके हाथों में बम रहे आखिर |

तीर उस ओर थे दिखाने को
पर निशाने पर हम रहे आखिर |

दिन में लगता है भोग पंचामृत
शाम को पी तो रम रहे आखिर |

सच कहे और लड़े सिस्टम से
उसमे दम तक ये दम रहे आखिर |


नोट संसद में जेल में हत्या
काम के क्या नियम रहे आखिर |

जाने क्यूँ महलों तरफ जाते हुए
यह कदम अपने थम रहे आखिर |


खूब आलाप जोड़ झाला हो
पर तराने में सम रहे आखिर |

दिन हों अब्बा से कड़क लेकिन शाम
माँ की ममता सी नम रहे आखिर |

दीन का आदमी को खौफ रहे
या खुदा यह करम रहे आखिर |

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on November 2, 2010 at 2:23pm
धन्यवाद शेष जी बहुत बहुत और दिवाली मुबारक!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 31, 2010 at 5:24pm
मैं समझ गया था अरुण भाई की यह टंकण का दोष है, टंकण करते समय शब्द कुछ इधर उधर हो गये है |
Comment by Abhinav Arun on October 31, 2010 at 5:12pm
श्री बागी जी वो पांचवां शेर आखिर ग़लत हो ही गया ,दर असल डायरी में सही लिखा है जैसा आपने बताया है |यहाँ टाइप करते गलत हो गया ,आपने ध्यान दिलाया बड़ी मेहरबानी वरना लोग क्या समझते ,आश्चर्य होता है कई बार प्रिव्यू देखने के बाद भी ये चूक रह गयी |बहरहाल आभार और खेद के साथ पुनः एडिट कर भेज रहा हूँ |
Comment by Abhinav Arun on October 31, 2010 at 5:07pm
सर्वश्री वीरेंद्र जी ,नवीन जी और बागी जी रचना पसंद की आप सब ने आभार |और अच्छा करने का प्रयास करूँगा |ओ.बी.ओ. में अब अच्छा लगने लगा है |यह मंच खूब आगे जाए ये कामना है |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 31, 2010 at 10:44am
दिन में लगता है भोग पंचामृत
शाम को पी तो रम रहे आखिर |

दोमुहा व्यक्तित्व का पोल खोलते हुए शे'र, बहुत ही बढ़िया कहा आपने,

पाचवे शे'र के मिसरा सानी मे कुछ गड़बड़ी दीखता है,रदीफ़ का दोष आ रहा है | एक बार अरुण भाई नजर दोहराना चाहेंगे,
सच कहे और लड़े सिस्टम से
उसमे दम तक रहे ये दम आखिर |
मेरे ख्याल से यदि यह कहे कि..................उसमे दम तक ये दम रहे आखिर, या कुछ और |

बाकी सभी शे'र अच्छे लगे | बधाई कुबूल करे |
Comment by Veerendra Jain on October 31, 2010 at 12:31am
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल... अरुण जी
बहुत बहुत बधाई..

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