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रेत में जैसे निशां खो गए

रेत में जैसे निशां खो गए

हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए

 

रात आँखें ताकती ही रहीं

मेहमां जाने कहाँ सो गए

 

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें

छोड़कर मझधार में खो गए

 

बोझ लेकर आपके पाप का

कांधे  में अपने उसे ढो गए

 

मिलने का वादा किया था मगर

हिचकियाँ देकर वो गुम हो गए

 

कौन आया है सदा के लिए

हम गए जो आज कल वो गए

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2012 at 2:50pm

छोटी बह्र में एक अच्छी ग़ज़ल साझा करने के लिए हार्दिक बधाई, नादिर भाई.

सभी अश’आर कुछ न कुछ कहते हैं, जो दिल से कहते हैं. यह आसान बात नहीं. कुछ तो बहुत कुछ कहते हैं -

बोझ लेकर आपके पाप का
कांधे में अपने उसे ढो गए ... .   वाह ! ...

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझदार में सो गए.. .... यहाँ शब्द ’मझधार” है. और काफ़िया खो हो जाय तो कहन ढंग में आती दिखती है.

एक उम्दा ग़ज़ल के लिए फिर से बधाई.

कृपया ध्यान दे...

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